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भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता से लें सीख, ताकि आपकी दोस्ती की भी दी जाए मिसाल

कृष्ण जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जा रही है। जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित है, जिनका संपूर्ण जीवन एक सीख है। पुत्र, प्रेमी, मित्र, राजा, सारथी न जानें कितने गुणों से युक्त श्रीकृष्ण की लीलाएं कुछ न कुछ सीख जरूर देती हैं। श्रीकृष्ण के एक सखा थे, जिनका नाम सुदामा था। सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण थे जबकि कृष्ण द्वारका के राजा, पर दोनों की मित्रता की मिसाल आज तक दी जाती है।

भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती भारतीय संस्कृति में सच्ची मित्रता का प्रतीक मानी जाती है। उनकी दोस्ती न केवल आदर्श थी, बल्कि उसमें कुछ ऐसे गुण भी थे जो हर मित्रता को मजबूत और स्थायी बना सकते हैं। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की पांच महत्वपूर्ण बातें या गुण अपनाए जा सकते हैं।

निस्वार्थ दोस्ती

श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती में कोई स्वार्थ नहीं था। वे बचपन के मित्र थे। सुदामा गरीब थे लेकिन उन्होंने कृष्ण से किसी प्रकार की सहायता की अपेक्षा नहीं की। श्रीकृष्ण ने भी कभी अपनी अमीरी का घमंड नहीं किया।

उनकी दोस्ती ये सिखाती है कि मित्रता में लालच नहीं होना चाहिए। बिना किसी स्वार्थ के दोस्ती का रिश्ता सच्चा होता है।

भरोसा

सुदामा ने भगवान कृष्ण पर अटूट विश्वास रखा। उन्होंने अपने मित्र से गरीबी के संघर्ष साझा करने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। कृष्ण ने भी सुदामा पर विश्वास जताते हुए उनकी मदद के लिए तत्परता दिखाई। उनकी मित्रता हमें सिखाती है कि दोस्ती भरोसे पर टिका रिश्ता है। दोस्तों के बीच विश्वास होना चाहिए, इससे कोई भी कठिनाई उनके रिश्ते को कमजोर नहीं कर सकती है।

समानता का भाव

भगवान श्रीकृष्ण द्वारका के राजा थे लेकिन सुदामा के साथ आर्थिक स्थिति के आधार पर कभी भेदभाव नहीं किया। सुदामा जब कृष्ण से मिलने द्वारका गए तो उनका स्वागत उसी प्रेम और सम्मान के साथ किया जैसे किसी अन्य मित्र का करते। दोस्ती में गरीबी अमीरी का कोई महत्व नहीं होता। दो दोस्त समान होते हैं।

समर्पण

सुदामा जब अपने मित्र कृष्ण से मिलने के लिए द्वारका गए तो उनके पैरों में छाले पड़ गए। जब कृष्ण ने ये देखा तो मित्र की तकलीफ से उन्हें भी दर्द महसूस हुआ। उन्होंने समर्पण भाव से सुदामा के जख्मों को धोया और मलहम लगाया।

दोस्त की खुशी में खुश होना

सुदामा और कृष्ण एक दूसरे के सुख -दुख को अपना समझते थे। सुदामा अपने बचपन के मित्र कृष्ण को द्वारका के राजा के रूप में देखकर खुश थे तो वहीं कृष्ण ने सुदामा द्वारा लाए तीन मुट्ठी चावल को पाकर खुशी जाहिर की। दोनों की एक दूसरे की खुशी में खुश होना जानते थे। सच्ची दोस्ती में भी ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं, बल्कि दोस्त की खुशी में खुश होना है।