फेफड़ों का कैंसर वैश्विक स्तर पर मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में फेफड़ों के कैंसर से 1.80 मिलियन (18 लाख) से अधिक लोगों की मौत हो गई। भारतीय पुरुषों में लंग्स कैंसर, कैंसर से होने वाली मृत्यु का सबसे आम कारण है। यहां सभी प्रकार के कैंसर के लगभग 5.9% और कैंसर से संबंधित मौतों के लगभग 8.1% मामलों के लिए फेफड़ों के कैंसर को ही जिम्मेदार माना जाता रहा है। भारतीय महिलाओं में कैंसर से संबंधित मृत्यु के मामलों में लंग्स कैंसर का सातवां स्थान है।
फेफड़ों में अनियंत्रित रूप से कोशिकाओं के बढ़ने से ये कैंसर होता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, धूम्रपान इस कैंसर का सबसे बड़ा कारण है। लंबे समय तक धूम्रपान करने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर का जोखिम कई गुना तक बढ़ जाता है।
दुनियाभर में कैंसर के बढ़ते जोखिमों के बारे में लोगों को जागरूक करने और इससे बचाव के उपायों के बारे में शिक्षित करने के उद्देश्य से हर साल एक अगस्त को वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे मनाया जाता है। आइए तेजी से बढ़ते इस कैंसर के बारे में जानते हैं।
फेफड़ों में कैंसर का खतरा
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, फेफड़ों का कैंसर किसी को भी हो सकता है, हालांकि धूम्रपान करने वाले या इसके धुएं के संपर्क में रहने वालों में इसका खतरा अधिक देखा जाता रहा है। धुएं में कई हानिकारक रसायन या अन्य विषाक्त पदार्थ होते हैं जिनके संपर्क में आने से फेफड़ों की कोशिकाओं को क्षति होने का खतरा रहता है। जब फेफड़ों में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होने लगती हैं, तो इससे ट्यूमर और कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
बच्चों में भी लंग्स कैंसर हो सकता है। प्लुरोपल्मोनरी ब्लास्टोमा जैसे लंग्स कैंसर निदान मुख्यतः 4 वर्ष की आयु से पहले किया जाता है। फेफड़ों की कोशिकाओं की कार्यप्रणाली में कुछ परिवर्तन के कारण होता है इस तरह का खतरा देखा जाता रहा है।
धूम्रपान के अलावा किन कारणों से हो सकता है कैंसर?
वैसे तो कई कारण हैं जो फेफड़ों के कैंसर के जोखिमों को बढ़ा सकते हैं, लेकिन बीड़ी-सिगरेट सहित किसी भी तरह के तम्बाकू उत्पादों का सेवन करना इसका सबसे बड़ा जोखिम कारक माना जाता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 80% मौतें धूम्रपान से संबंधित होती हैं। कई अन्य स्थितियां भी लंग्स कैंसर का खतरा बढ़ा सकती हैं।
- सेकेंडहैंड स्मोकिंग- आसपास के लोगों द्वारा छोड़े गए धूम्रपान के धुएं के संपर्क में रहना।
- वायु प्रदूषण, रेडॉन, कोयला उत्पादों के धुएं और अन्य हानिकारक पदार्थों के संपर्क में रहना।
- किसी बीमारी जैसे स्तन कैंसर या लिम्फोमा के इलाज के लिए रेडिएशन थेरेपी का इस्तेमाल।
- फेफड़ों के कैंसर की फैमिली हिस्ट्री होना।
इन लक्षणों से कर सकते हैं पहचान
फेफड़ों में कैंसर के शुरुआती चरणों में आमतौर पर कोई भी लक्षण प्रकट नहीं होते हैं। ये तब नजर आना शुरू होता है जब बीमारी गंभीर हो जाती है। ये चार संकेत हैं जिनकी मदद से काफी हद तक इस गंभीर स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
- लंबे समय तक बनी रहने वाली खांसी जो ठीक न हो रही हो।
- सीने में दर्द और खून वाली खांसी होना।
- सांस फूलना और घरघराहट बने रहना।
- आवाज में बदलाव, आवाज का भारी या कर्कश होना।