Thursday , November 7 2024
Breaking News

लोकतंत्र की भावना को आघात पहुंचा रहा सदन में अशोभनीय व्यवहार, सांसदों पर जमकर बरसे जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि राजनीतिक लाभ उठाने के लिए सदन की कार्यवाही के दौरान अशोभनीय व्यवहार लोकतंत्र की भावना को आघात पहुंचाता है। इस दौरान उन्होंने इस बात पर भी दुख जताया कि आजकल सदस्य दूसरों के विचारों को सुनने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं।

ओरिएंटेशन कार्यक्रम में नए राज्यसभा सदस्यों को दी सलाह
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने एक ओरिएंटेशन कार्यक्रम में नए राज्यसभा सदस्यों से कहा- आप दूसरों के विचारों से असहमत होने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन दूसरे के दृष्टिकोण को नजरअंदाज करना संसदीय परंपरा का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ सदस्य अखबारों में जगह पाने की कोशिश करते हैं और सदन से बाहर निकलने के तुरंत बाद मीडिया में बयान देते हैं और लोगों का ध्यान खींचने के लिए सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल करते हैं।

सदस्यों के व्यवहार से दुखी नजर आए सभापति
उन्होंने आगे कहा कि कुछ सदस्य सदन में अपने भाषण से एक मिनट पहले आते हैं और भाषण खत्म होने के तुरंत बाद चले जाते हैं। आपकी उपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि आप हिट-एंड-रन रणनीति अपनाएं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद संवैधानिक मूल्यों और स्वतंत्रता का गढ़ रही है। उन्होंने कहा कि कई बार समस्याएं आई हैं, लेकिन सदन के नेताओं ने बुद्धिमता का प्रयोग करते हुए रास्ता दिखाया है।

आपातकाल के समय को भी धनखड़ ने किया याद
उन्होंने सदस्यों से कहा, लेकिन अब स्थिति चिंताजनक है। अभद्र व्यवहार को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जो लोकतंत्र की भावना पर आघात है। इस दौरान उन्होंने ने अपने भाषण में आपातकाल के दौर का भी जिक्र किया, उन्होंने कहा कि- केवल एक दर्दनाक, हृदय विदारक काला दौर रहा है, जब आपातकाल की घोषणा की गई थी। उस समय हमारा संविधान केवल कागज बनकर रह गया था। इसे फाड़ दिया गया था और नेताओं को जेल में डाल दिया गया था।

राजनीति करना स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए जरूरी- धनखड़
राज्यसभा के सभापति ने कहा कि हम संसदीय प्रणाली को राजनीतिक दल की भूमिका से आकलन कर के नहीं देख सकते। राजनीति का स्थान है, राजनीति करनी होती है। राजनीति करना स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए आवश्यक है। लेकिन राष्ट्र से जुड़े हुए मुद्दों को देखकर, राष्ट्रहित को देखकर, राष्ट्रवाद को समर्पित करते हुए।