वाराणसी: नीलांचल निवासाय नित्याय परमात्मने, बलभद्र सुभद्राभ्याम् जगन्नाथाय ते नमः…। यानी नीलांचल पर निवास करने वाले भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को नमस्कार है। नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ को भक्त पान का भोग अर्पित करेंगे। रथयात्रा मेले में भक्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान को नानखटाई के साथ ही जगन्नाथी पान का भोग भी अर्पित करते हैं।
काशी के पहले लक्खा मेले में भगवान जगन्नाथ को पान अर्पित करके भक्त सुख, सौभाग्य और जीवन में प्रगति की कामना करेंगे। भगवान जगन्नाथ को अर्पित होने वाला पान भी बेहद खास तरीके से तैयार होता है। इसमें पान, सुपाड़ी, चूना, कत्था, गुलकंद, लौंग, नारियल और इलायची डाली जाती है।
भगवान को अर्पित होने वाला ये खास पान गिरजाघर से लेकर महमूरगंज के बीच की हर पान की दुकान पर पहुंच चुका है। पान विक्रेता अमन चौरसिया का कहना है कि बनारस में रोजाना तीन ट्रक पान की खपत होती है।भगवान जगन्नाथ को अर्पित होने वाला पान ओडिशा से आता है। इसे जगन्नाथी या जगरनाथी पान भी कहते हैं। इसके अलावा मगही व देशी पान का भी भोग चढ़ाया जाता है।
मान्यता है कि भोलेनाथ को पान अति प्रिय है। पान का पहला बीज भगवान शिव और माता पार्वती ने हिमालय के एक पहाड़ पर बोया था। इसी वजह से पान के पत्ते को पवित्र पत्ते के रूप में पहचान मिली। आज भी सभी धार्मिक अनुष्ठान में पान के पत्ते का इस्तेमाल होता है।
भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ही भगवान जगन्नाथ हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु को पान बेहद प्रिय हैं। उन्हें पान के पत्तों का भोग लगाने से वैवाहिक जीवन हमेशा सुखमय बना रहता है और जीवन में प्रगति होती रहती है। यही कारण है पूरे साल रथयात्रा पर्व का बेसब्री से इंतजार कर रहे काशीवासी भगवान जगन्नाथ को जगन्नाथी पान का भोग लगाते हैं
संस्कृति का हिस्सा है पान
संस्कृति कर्मी राजेश गुप्ता का कहना है कि बनारस में बहुत बड़ी संख्या में लोग रोजाना पान खाते हैं और यह हमारी धार्मिक संस्कृति का एक हिस्सा है। पान, सिर्फ एक व्यंजन से कहीं बढ़कर है। यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक है। बीएचयू के वैद्य सुशील दुबे का कहना है कि पान औषधीय गुणों से भरपूर होता है।
आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि ने भी पान की खूबियों का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है पान खाने से पाचन शक्ति दुरुस्त होती है। सुश्रुत का मानना है कि पान गले को साफ रखता है और इसके सेवन से मुंह से दुर्गंध नहीं आती है। इसके अलावा कई अन्य बीमारियों में भी इसका इस्तेमाल होता है।