कोल्हापुर: राकांपा (एसपी) अध्यक्ष शरद पवार ने शनिवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के भाषण में आपातकाल का उल्लेख अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि यह उनकी पद की गरिमा के खिलाफ है। शरद पवार ने कहा कि उनके भतीजे और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के बजट पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ जनता को यह दिखाना चाहते हैं, कि वे कुछ बड़ा करने जा रहे हैं।
18वीं लोकसभा में ओम बिरला अध्यक्ष पद पर चुने गए। अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद ओम बिरला ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1975 में लगाए गए आपातकाल को संविधान पर हमला बताते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा। जिस कारण लोकसभा में हलबली भी मची। इस पर शरद पवार ने शनिवार को उन पर तंज किया। उन्होंने कहा कि अध्यख ने अपने संबोधन में आपातकाल का उल्लेख करके पद की गरिमा खो दी। आपातकाल को 50 साल हो चुके हैं, इंदिरा गांधी अब जीवित भी नहीं हैं। तो अध्यक्ष अब इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं?”
उन्होंने स्पीकर की राजनीतिक भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा, “क्या स्पीकर की भूमिका राजनीतिक बयान देना है? उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि उनका बयान उचित नहीं था। राष्ट्रपति के भाषण में भी इस मुद्दे का संक्षिप्त उल्लेख था। यह भी जरूरी नहीं था।” उन्होंने कहा कि विपक्ष में सबसे ज्यादा सांसदों वाली पार्टी को विपक्ष का नेता तय करने का अधिकार है, इसलिए राहुल गांधी को विपक्ष का नेता चुना गया। उन्होंने कहा, “कांग्रेस के सांसदों ने राहुल गांधी को अपना नेता बनाने का फैसला किया। एक तरह से यह राजनीति में पृष्ठभूमि वाली नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व है और जबरदस्त प्रयास करने की इच्छा है। मुझे यकीन है कि वह चमकेंगे।”
शरद पवार ने इस दौरान भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत पर बयान देने से पहले भाजपा को यह देखना चाहिए कि लोकसभा चुनाव से पहले उसके पास कितनी सीटें थीं और इस चुनाव के बाद उसके पास कितनी सीटें हैं। उन्होंने दावा किया, “भाजपा के पास संसद में बहुमत नहीं है। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के बिना वे सरकार नहीं बना पाते। उन्होंने कहा कि भाजपा इसे चाहे जितना छिपाने की कोशिश करें लेकिन सच्चाई साफ दिख रही है कि उन्हें भारत की जनता से स्पष्ट जनादेश नहीं मिला है।”
शरद पवार ने महाराष्ट्र विधानसभा में पेश हुए बजट पर कहा कि “यह किस तरह का बजट था? लड़कियों को मुफ्त शिक्षा, पंढरपुर वारी (तीर्थयात्रा) के प्रत्येक ‘दिंडी’ (समूह) के लिए 20,000 रुपये, विधान भवन में पेश किए जाने से पहले ही सब कुछ जनता के सामने आ गया। इसके दो अर्थ हैं पहला यह कि बजट को गुप्त रखने की परंपरा कायम नहीं रही। दूसरा बजट में प्रस्तुत कोई भी प्रावधान दिन के उजाले में नहीं आएगा।