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पाक डायरी: क्या पाकिस्तानी सरकार ला रही है ‘काला धन सफेद करा लो’ स्कीम?

काला धन सिर्फ भारत में ही सियासी मुद्दा नहीं है, बल्कि पाकिस्तान में भी इसे लेकर खूब रस्साकशी होती है. इन दिनों पाकिस्तान में सरकार की तरफ से पेश एक स्कीम की खूब चर्चा हो रही है जिसे लेकर ‘काले धन को सफेद करा लो’ जैसी सुर्खियों के साथ अखबारों मे संपादकीय लिखे जा रहे हैं.

मामला इसलिए अहम है क्योंकि काले धन और विदेशों में संपत्तियों के मामलों में ही नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी, तो पूर्व राष्ट्रपति और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के बड़े नेता आसिफ अली जरदारी के दामन पर भी विदेशों में अरबों की संपत्ति रखने के आरोप हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का काबुल दौरा और पाकिस्तान और रूस के बीच बढ़ती नजदीकियां भी पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में चर्चा का विषय हैं.

कमजोर सरकार

जमात ए इस्लामी पार्टी का मुखपत्र कहे जाने वाले अखबार ‘जसारत’ ने लिखा है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने काले धन को सफेद करने और ऑफ शोर कंपनियों को जायज करार देने के लिए एक स्कीम पेश की है. अखबार कहता है कि ‘टैक्स अमनेस्टी’ नाम की इस स्कीम के तहत विदेशों में रखी दौलत और गैर कानूनी संपत्ति को उजागर करने के लिए सिर्फ एक बार पांच फीसदी तक जुर्माना अदा करना होगा और ऐसा करने वालों को पूरी तरह से कानूनी सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी.

अखबार की टिप्पणी है कि होना तो यह चाहिए था कि काला धन रखने और विदेशों में गैर कानूनी संपत्ति जमा करने वालों को कानून के दायरे में लाकर सजाएं दी जाएं लेकिन एक कमजोर सरकार यह काम नहीं कर सकती है जबकि दूसरी तरफ काला धन रखने वाले बहुत ताकतवर हैं.

अखबार कहता है कि कब से यह शोर मचा हुआ है कि विदेशों में आसिफ अली जरदारी और नवाज शरीफ की बेशुमार संपत्तियां हैं, लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान की सरकार आर्थिक तंगियों का शिकार है और इस स्कीम का मकसद भी बस कुछ पैसा कमाना है.

वापस आएगी लूटी गई दौलत

‘रोजनामा पाकिस्तान’ के मुताबिक कहा जा रहा है कि राजनेताओं को इस स्कीम का फायदा उठाने से रोक दिया गया है, लेकिन वे अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या फ्रंट मैनों के जरिए इस स्कीम का लाभ ले सकते हैं. अखबार की राय है कि अगर ऐसा होगा तो यह भी कोई नई बात नहीं हैं क्योंकि पाकिस्तान में बड़े राजनेताओं ने अपने दोस्तों के नाम पर जायदाद भी बना रखी हैं और उनके नाम पर कारोबार भी होते हैं.

अखबार लिखता है कि पहले भी ऐसी न जाने कितनी स्कीम आ चुकी हैं और समस्या अपनी जगह जस की तस है. अखबार के मुताबिक यह स्कीम भी नाकाम हो जाएगी, ऐसा कहने वाले कुछ जागीरदार हैं जिन्होंने कृषि सुधारों को नाकाम बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई थी और आज तक वे कानून को मुंह चिढ़ा रहे हैं.

वहीं ‘औसाफ’ ने इस स्कीम में राजनेताओं को शामिल करने की पैरवी की है. अखबार कहता है कि इससे पाकिस्तान से लूट कर विदेशों में रखी गई दौलत का अगर 25 फीसदी हिस्सा भी वापस आ जाए तो देश की डगमगाती अर्थव्यवस्था की हालत को बेहतर किया जा सकता है. अखबार ने इस स्कीम को अच्छा बताते हुए काला धन विदेशों में रखने वालों से इस स्कीम का फायदा उठाने को कहा है.

रूस से नजदीकियां

‘नवा ए वक्त’ का संपादकीय है- पाकिस्तान और रूस के बीच दोतरफा कारोबार दोगुना करने पर सहमति. अखबार लिखता है कि पिछले दिनों पाकिस्तानी रक्षा मंत्री खुर्रम दस्तगीर के मॉस्को दौरे में दोनों देशों के बीच ऊर्जा, व्यापार, रक्षा, कृषि और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए.

अखबार लिखता है कि पचास और साठ के दशक में पाकिस्तान और रूस के बीच व्यापारिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडलों का आना जाना और द्विपक्षीय संबंध मौजूद थे, लेकिन 1971 में रूस भारत की तरफ झुकने लगा और पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते ठंडे पड़ते गए.

अखबार के मुताबिक अब चंद महीनों से दोनों देशों को करीब लाने की कोशिशें रंग ला रही हैं. अखबार कहता है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर प्रतिबंध लगा रखे हैं, ऐसे में रूसी बाजार में पाकिस्तानी फल, चावल, आम, ताजा और डिब्बाबंद गोश्त और सब्जियों की खेप के लिए अच्छी संभावनाएं मौजूद हैं.

तालिबान की पैरवी

दूसरी तरफ, ‘रोजानामा एक्सप्रेस’ ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के काबुल दौरे को एक स्वागतयोग्य कदम बताया है और इससे पाक-अफगान रिश्तों में तनाव के घटने की उम्मीद जताई है. अखबार कहता है कि इस बारे में सहमति होना बहुत ही अहम है कि दोनों देशों की शांति, खुशहाली और स्थिरता एक दूसरे से जुड़ी है, इसलिए दोनों देशों को मिलकर साझा समस्याओं से निपटना होगा और वे अपनी सरजमीन एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे.

वहीं अपने कट्टपंथी विचारों के लिए मशहूर अखबार ‘उम्मत’ ने अफगान सरकार को कठपुतली सरकार बताकर जाहिर कर दिया है कि पाकिस्तान में अफगानिस्तान के प्रति क्या नजरिया मौजूद है. अखबार ने पाकिस्तान की सरकार को हिदायत दी है कि जब तक अफगानिस्तान का असल नेतृत्व सामने न आ जाए, तब तक पाकिस्तान को ‘कठपुतली सरकार’ के साथ वार्ता में सावधानी बरतनी चाहिए. जाहिर है अखबार ढके-छुपे शब्दों में तालिबान की पैरवी कर रहा है.