नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) नेता मनीष सिसोदिया ने शराब नीति घोटाला के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सिसोदिया ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई द्वारा दर्ज मामलों में अपनी जमानत याचिका खारिज करने के हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। जस्टिस अरविंद कुमार और संदीप मेहता की पीठ मंगलवार को सिसोदिया की याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है।
हाई कोर्ट ने 21 मई को शराब घोटाले के संबंध में ईडी और सीबीआई द्वारा दर्ज अलग अलग मामलों में उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि यह मामला उनके (सिसोदिया) द्वारा सत्ता के दुरुपयोग और जनता के विश्वास के उल्लंघन से जुड़ा है। उन्होंने कहा, “सिसोदिया का आचरण लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ बड़ा विश्वासघात है।”
हाई कोर्ट ने कहा कि सिसोदिया दिल्ली सरकार में एक बहुत ही शक्तिशाली व्यक्ति थे। उनके पास 18 विभाग थे, जिसमें आबकारी विभाग भी शामिल था। उन्हें दिल्ली में नई आबकारी नीति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पिछले साल 26 फरवरी को शराब घोटाले में शामिल होने के आरोप में सिसोदिया को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद सीबीआई की तरफ से दर्ज एफआईआर के बाद नौ मार्च 2023 को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया। सिसोदिया ने 28 फरवरी 2023 में दिल्ली कैबिनेट इस्तीफा दे दिया था।
सिसोदिया के लिए जमानत की मांग करते हुए उनके वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा था कि ईडी और सीबीआई अभी भी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में लोगों को गिरफ्तार कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि इसके जल्द समापन का कोई समाधान नहीं है।
क्या थी दिल्ली की नई शराब नीति
17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने राज्य में नई शराब नीति लागू की। इसके तहत राजधानी में 32 जोन बनाए गए और हर जोन में ज्यादा से ज्यादा 27 दुकानें खुलनी थीं। इस तरह से कुल मिलाकर 849 दुकानें खुलनी थीं। नई शराब नीति में दिल्ली की सभी शराब की दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया। इसके पहले दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत प्राइवेट थीं। नई नीति लागू होने के बाद 100 प्रतिशत प्राइवेट हो गईं। सरकार ने तर्क दिया था कि इससे 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा।
सरकार ने लाइसेंस की फीस भी कई गुना बढ़ा दी। जिस एल-1 लाइसेंस के लिए पहले ठेकेदारों को 25 लाख देना पड़ता था, नई शराब नीति लागू होने के बाद उसके लिए ठेकेदारों को पांच करोड़ रुपये चुकाने पड़े। इसी तरह अन्य कैटेगिरी में भी लाइसेंस की फीस में काफी बढ़ोतरी हुई।