पश्चिम बंगाल में रामनवमी के मौके पर बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस ने जूलूस निकाले. दोनों के जुलूस के बीच फर्क बस इतना था कि बीजेपी ने हथियारों की नुमाइश के साथ जुलूस निकाले. हालांकि ममता सरकार ने जुलूस में हथियार ले जाने की इजाजत नहीं दी थी. इसके बावजूद बीजेपी और हिंदू संगठनों ने हथियारों के साथ जुलूस निकाल कर उग्र हिंदुत्व के शक्ति-प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी इसी जुलूस की वजह से खुद को राजनीतिक तौर पर असहज महसूस कर रही हैं. दरअसल उन्होंने खुद ही ‘नरम हिंदुत्व’ दिखाते हुए राज्य में रामनवमी के जुलूस और धार्मिक कार्यक्रमों को लेकर पार्टी को इशारा किया था. लेकिन रामनवमी के मौके को बीजेपी ने हाईजैक कर टीएमसी को बैकफुट पर धकेल दिया. बीजेपी और तमाम हिंदू संगठनों ने खुलेआम हथियारों को लहरा कर राज्य में उग्र हिंदुत्व का शंखनाद कर ही दिया.
ऐसे में पुराने वोटबैंक के प्रति वफादारी निभाते हुए राज्य की सीएम ममता बनर्जी सवाल उठा रही हैं कि बीजेपी ने प्रतिबंध के बावजूद हथियारों के साथ जुलूस क्यों निकाला?
बीजेपी का कहना है कि रामनवमी के मौके पर अस्त्र-पूजा सैकड़ों साल पुरानी परंपरा है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष खुद गदा और तलवार लेकर अस्त्र-जुलूस में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि हिंदू विरोधी तृणमूल सरकार के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट करने की दिशा में ये पहला कदम है.
सवाल उठता है कि अस्त्र-शस्त्र से लैस जुलूस निकालकर आखिर घोष किस रूप में हिंदुओं को एकजुट करने का उद्घोष कर रहे हैं? दूसरा सवाल ये भी उठता है कि अस्त्र-जुलूस निकालने के बाद क्या राज्य बीजेपी को सांप्रदायिक हिंसा भड़कने का अंदेशा नहीं था?
हथियारों के जुलूस की वजह से जब धार्मिक उन्माद बढ़ा तो सांप्रदायिक माहौल भी खराब हुआ. कोई निर्दोष भी जान से गया तो कुछ घायल हॉस्पिटल में भर्ती हैं. जुलूस तो गुजर गया लेकिन अब लोग सियासी गुबार देख रहे हैं
टीएमसी आरोप लगा रही है कि बीजेपी ने रामनवमी का इस्तेमाल लोगों को बांटने के लिए किया है. लेकिन टीएमसी से भी सवाल पूछा जा सकता है कि अबतक रामनवमी से दूरी बनाने के बाद अचानक उसे रामनवमी को लेकर आस्था दिखाने की जरूरत कैसे पड़ गई? क्या इसके पीछे एकमात्र वजह ये है कि ममता बनर्जी को अपनी सियासी जमीन पर हिंदुत्व की धमक सुनाई देने लगी है?
क्या ममता के नरम हिंदुत्व के पीछे तुष्टीकरण के आरोप असली वजह हैं जिनसे वो डरी हुई हैं? पिछले साल दुर्गा पूजा के दौरान ममता सरकार ने मोहर्रम के जुलूस की वजह से प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद ममता सरकार के फैसले को हाईकोर्ट से फटकार लगी. इस घटना ने बीजेपी समेत कई हिंदू संगठनों की बांछें खिला दीं जो टीएमसी के खिलाफ हिंदुत्व को लामबंद करना चाहते हैं.
लेकिन रामनवमी के मौके पर ममता सरकार के बदले-बदले से अंदाज दिखाई दिए. तृणमूल कांग्रेस ने बेहद सतर्कता के साथ अल्पसंख्यक वोटबैंक को नाराज किए बगैर हिंदुत्व कार्ड खेला. टीएमसी ने भी बीजेपी की ही तरह रामनवमी के कार्यक्रमों और जुलूसों में जमकर शिरकत की. सड़कों में होर्डिंग दिखे तो रंगबिरंगी रोशनियों के बोर्ड में बधाई संदेश जगमगाते दिखे. कई जगह टीएमसी के नेता, मंत्री और विधायक रामनवमी के कार्यक्रमों में शामिल हुए.
लेकिन बीजेपी ने ममता सरकार की कमजोर नस को पहचानते हुए हथियारों के साथ जुलूस निकाल कर एक तीर से दो निशाने साध लिए. वो ये जानते थे कि ममता बनर्जी अस्त्र-जुलूस पर सवाल जरूर खड़े करेंगीं जिससे वो खुद ही एक बार फिर हिंदू विरोधी ही साबित होंगी और ये बीजेपी के पक्ष में जाएगा. जुलूस के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा से नाराज ममता ने आखिर पूछ ही लिया कि, ‘क्या किसी ने देखा है कि राम के हाथ में बंदूक थी?’
बीजेपी ये जानती है कि इस वक्त ममता सरकार बेहद दबाव में है. इसी दबाव में हिंदुओं के खिलाफ ममता का एक भी कदम या बयान पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर सकता है. दरअसल त्रिपुरा की तरह पश्चिम बंगाल में ममता के किले में सेंध लगा पाना बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है. क्योंकि सबसे बड़ी दिक्कत वो वोटबैंक है जो वामदलों से विरासत में तृणमूल कांग्रेस को मिला है.
पश्चिम बंगाल में 30 फीसदी मुस्लिम और 22 फीसदी दलित-ओबीसी वोटर वामदल, टीएमसी और कांग्रेस के साथ हैं. तभी बीजेपी के पास सिवाए हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के दूसरा विकल्प नहीं है. बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड को देखकर ही ममता बनर्जी भी राम की शरण में सत्ता-नीति बदलने को मजबूर हैं. लेकिन रामनवमी पर अस्त्र-जुलूस निकालकर बीजेपी ने टीएमसी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाने का काम किया है क्योंकि वो ये जानती है कि ममता सरकार को इस मुद्दे पर विरोध करना चुनाव में भारी पड़ सकता है.