भारतीय बच्चों में बढ़ती कई गंभीर बीमारियों को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा, देश में एक लाख से अधिक बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित हैं जिन्हें निरंतर ब्लड ट्रांसफ्यूजन (खून बदलते रहने) की जरूरत होती है। थैलेसीमिया एक गंभीर समस्या है और ट्रांसफ्यूजन बहुत ही कठिन प्रक्रिया है, ऐसे में आवश्यक है कि बच्चों में इसकी रोकथाम को लेकर गंभीरता से ध्यान दिया जाए।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा, थैलेसीमिया के जोखिमों को कम करने के लिए जरूरी है कि गर्भावस्था में ही महिलाओं की विशेष निगरानी और उपयुक्त जांच की जाए जिससे बच्चे के थैलेसीमिया के साथ पैदा होने के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सके। थैलेसीमिया खून से संबंधित गंभीर बीमारी है, जिन लोगों को ये समस्या होती है उन्हें नियमित अंतराल पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराते रहने की जरूरत होती है। आइए बच्चों में होने वाली इस बीमारी के कारण और इससे बचाव के लिए आवश्यक उपायों के बारे में जानते हैं।
थैलेसीमिया के बारे में जानकारी और रोकथाम
स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव ने कहा इस गंभीर बीमारी का इलाज और देखभाल दोनों ही काफी कठिन हैं। कई राज्य इस रोग की रोकथाम के लिए सिकल सेल के साथ कुछ परीक्षण कर रहे हैं। जन्म से पहले से इस तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का अंदाजा लग जाने से बच्चों को जानलेवा बीमारी से बचाया जा सकता है। आइए जानते हैं कि थैलेसीमिया क्या है और इसे इतनी गंभीर बीमारी के तौर पर क्यों देखा जा रहा है?
थैलेसीमिया के बारे में जानिए
थैलेसीमिया वंशानुगत रक्त विकार है जिसमें शरीर की हीमोग्लोबिन और स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन करने की क्षमता को प्रभावित हो जाती है। जिन लोगों को थैलेसीमिया की समस्या होती है उनमें एनीमिया जैसे लक्षणों का अनुभव होते रहना काफी सामान्य हो जाता है। थैलेसीमिया के कारण बनी रहने वाली एनीमिया की समस्या के कारण लगातार सांस लेने में दिक्कत बने रहने, ठंड लगने, चक्कर आते रहने और त्वचा में पीलापन बढ़ने की समस्या हो सकती है। माता-पिता के जीन में दोष के कारण बच्चों में इस गंभीर बीमारी के विकसित होने का खतरा हो सकता है। यही कारण है कि गर्भावस्था के दौरान जांच में इस समस्या का पता लगाकर आवश्यक उपचार की मदद से बच्चों में इस जोखिम को कम किया जा सकता है।
थैलेसीमिया हो जाए तो क्या करें?
जिन बच्चों में थैलेसीमिया का निदान किया जाता है उनमें उपचार के तौर पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन, बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के साथ दवाएं दी जा सकती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं बच्चों के लिए ये प्रक्रिया कठिन हो सकती है, यही कारण है स्वास्थ्य मंत्रालय जन्म से पहले ही इस समस्या के निदान और इसके उपचार को लेकर प्रयास करने पर ध्यान दे रहा है।