बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से उनके मुकदमों पर बहस करने की अनुमति देने के लिए बनाए गए नियम मौलिक अधिकारों के तहत हैं। अदालत ने आगे कहा कि यह नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अलग नहीं हैं। न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ में पूर्व न्यायिक अधिकारी नरेश वझे की याचिका को खारिज किया है।
याचिकाकर्ता ने की थी यह अपील
पूर्व न्यायिक अधिकारी ने अपनी याचिका में पार्टियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से कार्यवाही की प्रस्तुति और संचालन के लिए सितंबर 2015 की अधिसूचना को चुनौती दी थी। इसके जवाब में अदालत ने कहा कि इन नियमों से कानून के समक्ष समानता, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हो रहा। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि ये नियम न्याय प्रशासन की सुविधा के लिए किसी पक्ष द्वारा प्रस्तुतीकरण और कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के मद्देनजर तैयार किए गए हैं। याचिकाकर्ता नरेश वझे ने अपनी याचिका में दावा किया था कि ये नियम वादियों को सुनवाई के अधिकार से दूर रखते हैं और इस तरह से यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
अदालत में अपने मामले पर खुद बहस करने के लिए नियम
बता दें कि अगर कोई याचिकाकर्ता अपने मामले पर खुद बहस करना चाहता है, तो उसे पहले हाईकोर्ट के रजिस्ट्री विभाग के अधिकारियों वाली दो सदस्यीय समिति के सामने पेश होना पड़ता है। समिति द्वारा मामले की जांच करने और याचिकाकर्ता से बात करने के बाद एक रिपोर्ट तैयार की जाती है। रिपोर्ट में यह बताया जाता है कि याचिकाकर्ता अपने मामले पर अदालत में खुद बहस कर सकता है या नहीं। जब याचिकाकर्ता को इस योग्य समझा जाता है, तो उसे यह वचन देना होता कि वह अदालत की कार्रवाई में कोई व्यवधान नहीं डालेगा।