नई दिल्ली: बढ़ता स्क्रीन टाइम बच्चों के दिमाग के काम करने की क्षमता को कम कर रहा है और इससे उनकी याददाश्त कमजोर हो रही है। 12 साल से कम उम्र के बच्चों पर इसका काफी गलत असर पड़ रहा है। सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी अमेरिका के शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चा अगर ज्यादा से ज्यादा समय वर्चुअल वॉर्ड यानी स्क्रीन के सामने बिताता है तो वह खेलकूद, व्यायाम, लोगों से मिलने, बातचीत करने जैसे बहुत से कौशल सीखने के लिए अपना समय कम करता जाता है। इसका सीधा असर उसके समग्र व्यक्तित्व विकास पर पड़ता है।
प्रतिबंध से समाधान का प्रयास
मार्च में अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य ने 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने वाला एक कानून भी पारित किया है। ब्रिटेन की सरकार भी 16 साल से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल फोन की बिक्री पर ही प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है।
दुनियाभर के अभिभावक चिंतित
अध्यनकर्ताओं के अनुसार, इस समय दुनियाभर के अभिभावकों का सबसे अधिक ध्यान इस बात पर लगा रहता है कि वे अपने बच्चों को मोबाइल स्क्रीन से दूर कैसे रखें। ब्रिटेन में डेजी ग्रीनवेल और क्लेयर फर्नीहॉफ ने अपने बच्चों को स्मार्टफोन से कैसे दूर रखा जाए, इसकी चर्चा के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। जब उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपनी योजनाओं के बारे में पोस्ट किया तो देखते ही देखते बड़ी संख्या में माता-पिता इसमें शामिल होने लगे। अब उनके समूह स्मार्टफोन-फ्री चाइल्डहुड में 60 हजार से अधिक सदस्य हैं। ब्रिटेन में ऐसे कई समूह हैं, जो बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर चिंतित हैं।
ये परेशानियां आती हैं सामने
ब्रिटेन में हुए शोध के अनुसार, 12 साल की उम्र तक के लगभग हर बच्चे के पास फोन होता है। वे ज्यादातर समय सोशल मीडिया पर ही बिताते हैं। उनके काम में अगर व्यवधान डाला जाए तो उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगता है। कुछ बच्चे गुमसुम और कुछ आक्रामक हो जाते हैं। उनमें संवेदनशील विचार कम होने लगते हैं। साथ ही मोटापा, नींद संबंधी विकार, अवसाद और चिंता सहित मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की संभावना बढ़ जाती है।
दो से 12 साल के बच्चों के लिए एक घंटे से ज्यादा समय नुकसानदेह…
विशेषज्ञों के अनुसार, दो से 12 साल के बच्चों को 24 घंटे में एक घंटे ही मोबाइल देखने दिया जाए और 12 साल से अधिक बच्चों को दो घंटे ही दिया जाए। इससे ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करने पर बहुत सारे दुष्परिणाम हो सकते हैं।