साउथ अफ्रीका के साथ टेस्ट सीरीज में भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि भारत बिना किसी स्पिनर के टेस्ट खेला और जीता भी. अव्वल तो हमें याद नहीं पड़ता कि कभी भारत ने बिना किसी स्पिनर के टेस्ट खेला हो, जीतना तो बहुत दूर की बात है. यह हम ही जान सकते हैं कि हम जैसे लोगों के लिए यह कितनी बड़ी बात है जिन्होंने हमेशा दूसरे देशों के तेज गेंदबाजों को भारतीय बल्लेबाजों पर सामूहिक आक्रमण करते देखा है. मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार, जसप्रीत बुमराह और इशांत शर्मा का आक्रमण इस वक्त दुनिया के किसी भी मैदान पर सर्वश्रेष्ठ आक्रमणों में से है. किसी और दौर में तो हार्दिक पांड्या अकेले भी टीम में होते तो यह ख़ुशकिस्मती मानी जाती.
भुवनेश्वर कुमार की गति कम है, लेकिन वह सबसे खतरनाक
आजकल गति का पैमाना 140 किलोमीटर प्रति घंटा है और भारतीय टीम में सभी गेंदबाज इससे तेज या इसके आसपास तो गेंदबाजी करते ही हैं. इनमें सबसे कम गति भुवनेश्वर कुमार की है, लेकिन वह इनमें सबसे खतरनाक गेंदबाज हैं. सुनील गावस्कर का वर्नोन फिलैंडर के बारे में कहना था कि फिलैंडर जैसे गेंदबाज किसी भी सुपरफास्ट गेंदबाज से ज्यादा खतरनाक होते हैं. उनका कहना है कि सुपरफास्ट गेंदबाज को पांच-छह ओवर तक संभलकर खेलने की जरूरत होती है. जब तक गेंद सख्त होती है और पिच ताजा होती है. उसके बाद वे उतने खतरनाक नहीं रहते. फिलैंडर जैसे गेंदबाज एक या दो घंटे बाद भी विकेट लेने की काबिलियत रखते हैं क्योंकि वे हवा में और पिच से दोनों तरफ़ गेंद घुमा सकते हैं. साउथ अफ्रीका के अपने विशेषज्ञों का मानना था कि भुवनेश्वर फिलैंडर से कमतर नहीं शायद बेहतर ही होंगे.
घरेलू क्रिकेट में दस-पंद्रह ऐसे गेंदबाज हैं जिनके टीम में आने की संभावना
यह तो टेस्ट टीम की बात हुई. शार्दुल ठाकुर ने भी उन्हें जो मौके मिले उन्हें भरपूर भुनाया और साबित किया कि वह बेहतर मौकों के हकदार हैं. इसके अलावा घरेलू क्रिकेट में कम से कम दस-पंद्रह तो ऐसे तेज, मध्यम तेज गेंदबाज हैं जिनके भारतीय टीम में आने की संभावना हो सकती है. अंडर-19 टीम में ही तीन ऐसे तेज गेंदबाज हैं जिनकी बड़ी चर्चा हो रही है.
कमलेश नागरकोटी, शिवम मावी और इशान पोरेल को बहुत संभावनाशील बताया जा रहा है. घरेलू क्रिकेट में तो अगर कोई भी मैच देखें तो उसमें एक-दो तेज गेंदबाज ऐसे दिख जाते हैं, जिनके बारे में लगता है कि अगर वे एक दो कदम और बढ़ें तो वे अंतरराष्ट्रीय सितारे हो सकते हैं. कहीं बासिल थंपी, कहीं आवेश खान, कहीं नवदीप सैनी, कहीं प्रसिद्ध कृष्ण, हर टीम में तेज गेंदबाजी का हुनर और भविष्य की संभावना देखने को मिल रही है.
एक दौर में तेज गेंदबाजी और भारत का बैर था
एक सवाल इससे पैदा होता है कि कुछ दशकों पहले भारत में तेज गेंदबाजों का ऐसा अकाल क्यों था कि चिराग लेकर ढूंढने से कोई नहीं मिल रहा था. उस दौर में तेज गेंदबाजी और भारत का बैर प्रसिद्ध था. तरह-तरह के कयास लगाए जाते थे कि शायद भारतीयों में कद-काठी में तेज गेंद डालने का दमख़म नहीं है. शायद हमारी मानसिकता ऐसी है कि हम स्पिनर ही पैदा कर पाते हैं, तेज गेंदबाज नहीं. यह चर्चा हम एकाध बार कर चुके हैं कि भारत के लिए शुरुआती गेंदबाजी करने का श्रेय नवाब पटौदी, अजित वाडेकर, सुनील गावस्कर जैसे बल्लेबाजों और बुधी कुंदरन जैसे विकेटकीपर बल्लेबाजों को मिल चुका है. अगर ऑस्ट्रेलिया की तेज पिचों पर भी भारत की गेंदबाजी की शुरुआत नवाब पटौदी को करनी पड़े तो हम समझ सकते हैं कि स्थिति कितनी खराब रही होगी.
तेज गेंदबाज न होने का एक साइड इफेक्ट यह था कि भारतीय बल्लेबाजों को तेज गेंदबाजी खेलने का अभ्यास नहीं था, इसलिए तेज गेंदबाजी उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी. यह बात दुनिया भर में मानी जाती थी कि भारतीय बल्लेबाज तेज गेंदबाजी के आगे ढेर हो जाते हैं. इस कमजोरी को दूर करने के लिए एक बार बोर्ड ने विदेशी तेज गेंदबाजों को घरेलू क्रिकेट में खिलाने का फैसला किया. दो-तीन साल यह प्रयोग भी चला, लेकिन कोई फायदा इससे नहीं हुआ. तो ऐसा क्या हुआ कि भारत में तेज गेंदबाजों की फसल आ गई?
भारतीयों के लिए कपिलदेव ने तोड़ी मानसिक बाधा
पहली बार एक मील की दौड़ चार मिनट से कम में करने वाले सर रोजर बैनिस्टर से पूछा गया कि आखिर चार मिनट की बाधा पार करने में इतना वक्त क्यों लगा और जब यह बाधा पार हो गई तो फिर इसके पार पहुंचना इतनी जल्दी-जल्दी क्यों होने लगा? बैनिस्टर ने जवाब दिया कि चार मिनट की बाधा, दरअसल मानसिक बाधा थी, जैसे ही वह पहली बार टूटी तो फिर टूटती चली गई. इस जवाब से यह समझा जा सकता है कि खेलों में हम जिन्हें शारीरिक बाधाएं मानते हैं, वे मनोवैज्ञानिक बाधाएं ज्यादा होती हैं. एक बार कोई उन्हें तोड़ दे तो फिर बाकी लोगों के लिए वे बाधाएं नहीं होतीं और वे भी उनके आगे निकल जाते हैं. भारतीयों के लिए यह बाधा सबसे पहले कपिलदेव ने तोड़ी.
उन्होंने साबित किया कि कोई तेज गेंदबाज भारतीय टीम का नंबर एक मैच जिताने वाला गेंदबाज हो सकता है. यानी वह हीरो हो सकता है छोटी सी भूमिका में सहायक अभिनेता नहीं. इसलिए कपिलदेव के बाद भारत में किसी स्पिनर या बल्लेबाज को शुरुआती गेंदबाजी करने की जरूरत नहीं रही.
कई प्रतिभाशाली गेंदबाजों को हिफाजत से नहीं रखा गया
लेकिन एक बाधा थी जो तब भी बनी हुई थी. हम देखते हैं कि कपिल के बाद के दौर से लगभग पिछले चार-पांच साल तक सचमुच तेज गेंदबाज कोई नहीं आया या आया तो शुरुआती एकाध साल तक सनसनीखेज तेज गेंदबाजी करने के बाद औसत किस्म का मध्यम तेज गेंदबाज बन कर रह गया. अगर वह बहुत अच्छा हुआ तो जहीर खान हुआ वरना आरपी सिंह या मुनाफ पटेल जैसा उसका हश्र हुआ. ये सभी प्रतिभाशाली गेंदबाज थे, लेकिन उन्हें ना हिफाजत से रखा गया ना उनकी प्रतिभा को फलने फूलने दिया गया. इसकी वजह यह थी कि भारतीय क्रिकेट में उस दर्जे की आक्रामकता नहीं थी जिसमें तेज गेंदबाजों का समझदारी से इस्तेमाल हो सके. कुछ हद तक पुरानी रक्षात्मक मानसिकता बची हुई थी जो तेज गेंदबाजों को फलने फूलने से रोक रही थी.
शास्त्री और कोहली ने आक्रामकता को अपनी रणनीति बनाया
यह दूसरी बाधा रवि शास्त्री और विराट कोहली के नेतृत्व में टूटी, जब पूरी तरह आक्रामकता को अपनी रणनीति बनाया गया और तेज गेंदबाजों के लिए अपनी गति से समझौता करना जरूरी नहीं रहा. किसी भी तेज गेंदबाज को अगर यह भरोसा दिलाया जाए कि अपनी गति कम करना जरूरी नहीं है और उसे अच्छे विशेषज्ञों की मदद मुहैया करवाई जाए जो उसे गति कम किए बिना बेहतर बनाने की कोशिश करें तो भारत में भी तेज गेंदबाज पैदा हो सकते हैं. अगर यह माहौल भारतीय टीम में नहीं होता तो कमलेश नागरकोटी भी सुपरफास्ट गेंदबाज होने की नहीं सोचते. जैसा कि कई बड़े खिलाड़ी कहते हैं खेल में शरीर दस प्रतिशत और दिमाग नब्बे प्रतिशत होता है.