नई दिल्ली। बुधवार को सीबीआई के अधिकारी घंटों इस बात पर माथा पच्ची करते रहे कि आखिर किस तरह के हजारों करोड़ के लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिग और फॉरेन लेटर ऑफ क्रेडिट बन गए और पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारियों ने तुरत-फुरत में इसे जारी भी कर दिया.
नीरव मोदी के दो अधिकारियों ने जांच अधिकारियों के सामने इस बात को स्वीकार किया कि उन्होंने एलओयू से संबंधित आवेदन तैयार करके पीएनबी अधिकारियों के पास भेजा था लेकिन इन आवेदनों पर अंतिम मुहर कैसे लगी इसके बारे में कोई भी खुलासा करने से इंकार कर दिया.
बैंक अधिकारी ने जारी किए फर्जी LOU
बैंकिंग इतिहास के सबसे बड़े घोटाले की तह तक पहुंचने में जुटी सीबीआई ने कहा है कि नीरव मोदी की कंपनी फायरस्टार ग्रुप के लोअर परेल के पेनिंनसुला बिजनेस पार्क स्थित दफ्तर पर छापे के दौरान उसे फर्जी एलओयू की कुछ कॉपियां मिली हैं. सीबीआई का दावा है कि ये फर्जी कागजात तीन कंपनियों डायमंड आरयूएस,सोलर एक्सपोर्टस और स्टेलर डायमंड के नाम पर मिली हैं और इन्हें पीएनबी की ब्रैडी हाउस ब्रांच में जमा किया गया था.
सीबीआई का दावा है कि फायरस्टार ग्रुप के प्रसीडेंट फायनांस,विपुल अंबानी को मई 2013 से नवंबर 2017 तक चल रहे गोरखधंधे की पूरी जानकारी थी. विपुल अंबानी को पुरी तरह पता था कि नीरव मोदी के इशारे पर पीएनबी के रिटायर्ड डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी नियम कानूनों को धता बताते हुए लगातार फर्जी एलओयू जारी कर रहे थे.
सीबीआई का आरोप है कि विपुल अंबानी कंपनी के प्रेसीडेंट फायनेंस होने के नाते न केवल पीएनबी की मुबंई की ब्रैडी हाउस ब्रांच जाकर वहां के अधिकारियों से मिलते थे बल्कि वो पीएनबी के मुंबई सर्किल और जोनल दफ्तरों के अलावा दिल्ली में पीएनबी की मुख्य शाखा में जाकर भी अधिकारियों से लगातार मिलते रहते थे. इन कंपनियों के दस्तावेजों को कौन तैयार कर रहा था और कौन उसे संभाल रहा था इस पर विपुल के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था.
विपुल इस बात से भी इंकार नहीं कर रहे कि उन्हें इन सबकी कोई जानकारी नहीं थी. जब्त किए गए फर्जी लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग और परिस्थितिजन्य साक्ष्य इस बात का इशारा कर रहे हैं कि उन्हें फायरस्टार ग्रुप ऑफ कंपनीज में बन रहे फर्जी एलओयू के बारे में पूरी जानकारी थी और उन्होंने इसका विरोध नहीं किया बल्कि जानबूझ कर उसे छिपाए रख कर पीएनबी के जमाकर्ताओं के हजारों करोड़ रुपए के घोटाले में डूबाने में पूरी मदद की. उनका ये काम साबित करता है कि उन्होंने जानबूझ कर पीएनबी को चूना लगाने की साजिश का हिस्सा बने रहना स्वीकार किया.
PNB से प्राप्त फर्जी एलओयू का इस्तेमाल किया
अपने नोट में सीबीआई ने एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा कि पीएनबी के जोनल से लेकर हेड ऑफिस तक के बड़े अधिकारियों को नीरव मोदी और उनकी कंपनियों के साथ बैंक के इस तरह के बिजनेस डीलिंग की पूरी जानकारी थी. ऐसे में ये थ्योरी कि बैंक के बड़े अधिकारियों को इसके बारे में कोई भनक तक नहीं थी फेल हो जाती है.
फरार डायमंड व्यवसायी नीरव मोदी ने अपनी एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट कविता मनकीकर को तीनों कंपनियों डायमंड आरयूएस,सोलर एक्सपोर्टस और स्टेलर डायमंड का अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता बनाया हुआ था. इन तीनों कंपनियों ने कर्ज लेने के लिए पीएनबी से प्राप्त फर्जी एलओयू का इस्तेमाल किया.
जांच एजेंसी का कहना है कि कविता मनकीकर ने जाली तरीके से एलओयू जारी करने के लिए आवेदन किया. सीबीआई का कहना है कि कविता इस घोटाले पर अभी तक अपना मुंह बंद रखे हुए है. उसने अभी तक ये घोटाले के तरीकों और इसमें कंपनी और बैंक के अन्य कर्मचारियों की संलिप्तता पर कोई खुलासा नहीं किया है. इसी तरह से फायरस्टार इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के वरिष्ठ अधिकारी अर्जुन पटेल ने तीनों कंपनियों के नाम पर पीएनबी के ब्रैडी ब्रांच में जमा किए गए जाली आवेदन को तैयार किया लेकिन पूछताछ में अभी तक उसने भी खुलासा नहीं किया कि कैसे और कहां पर ये जाली अवेदन पत्र तैयार किए गए थे.
कविता ने हालांकि जांच ऐजेसियों के समक्ष ये दावा किया है कि उसने नीरव मोदी द्वारा अधिकृत किए जाने के बाद अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता के रूप में तीनों कंपनियों डायमंड आरयूएस,सोलर एक्सपोर्टस और स्टेलर डायमंड की तरफ से हस्ताक्षर किए. कविता के अनुसार नीरव मोदी के भरोसे और आदेश के बाद ही वो इन कंपनियों से संबंधित दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर रही थी बिना इस बात को जाने या समझे कि इसका परिणाम क्या होगा.
यहां तक कि जांच के दायरे में आए उस समय पीएनबी के तत्कालीन शाखा प्रबंधक राजेश जिंदल से भी सीबीआई ने एक घंटे से ज्यादा तक पूछ ताछ की. उनसे उनके सेवाकाल 2010-11 के बारे में पूछताछ की गई जिस दौरान उन्होंने गोकुलनाथ शेट्टी को बैंकिग प्रणाली और आरबीआई की गाइडलाइंस को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए एलओयू जारी करने की अनुमति दी थी.
जिंदल ने पूछताछ में इंकार किया कि एलओयू जारी करने में उनका किसी तरह का रोल था. सीबीआई का कहना है बैंक और नीरव मोदी की कंपनी से जुड़े तीनों अधिकारी इस मामले पर सच नहीं बोल रहे और बार बार ये दुहरा रहे हैं कि उन्हें नहीं पता था कि पीएनबी की ब्रैडी हाउस ब्रांच में क्या चल रहा था.
14 दिन की पुलिस रिमांड पर अधिकारी
सीबीआई का कहना है कि इन लोगों ने अभी तक इस बड़े घोटाले से संबंधित कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया है. वो ये बताने में असफल रहे हैं कि अगर वो नीरव मोदी से मिले हुए नहीं थे तो उन्होंने इन संदेहास्पद ट्रांजेक्शन्स के बारे में अपनी आवाज क्यों नहीं उठाई और इस घोटाले का पर्दाफाश करने में सहयोग क्यों नहीं किया. सीबीआई का कहना है कि इन लोगों ने फायरस्टार ग्रुप ऑफ कंपनीज में चल रहे गोरखधंधे को समझते हुए भी अपनी आंखें मूंदे रखी और इस घोटाले को बदस्तूर जारी रखने दिया.
सीबीआई ने इन अधिकारियों से जानकारी उगलवाने के लिए 14 दिन की पुलिस रिमांड की मांग की है. इसके साथ ही जांच ऐजेंसी ने ये भी साफ किया है कि पीएनबी के बड़े अधिकारियों से भी जल्द ही पूछताछ की जाएगी. जांचकर्ताओं का इस बात से माथा ठनका हुआ है कि किस तरह से स्विफ्ट प्रणाली का दुरुपयोग करते हुए भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से रुपयों की निकासी आसानी से की गई. सीबीआई का कहना है कि सामान्य रूप से लेटर ऑफ क्रेडिट तीन लोगों की सहमति से जारी होता है, पहला जो इसे फीड करता है दूसरा उसे वेरीफाई करता है और तीसरा जो उसे अधिकृत करता है.
जांच अधिकारियों को लगता है कि गोकुलनाथ शेट्टी दो लोगों का रोल खुद अदा कर रहा था. वो खुद ही वैरीफाई करने के साथ साथ खुद ही अधिकृत भी करता था. इतना ही नहीं उसने सिस्टम में फीड करने वाले को भी अपनी तरफ मिला लिया था. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई है, जब एक बार एलसी जारी हो जाता था तो उसकी रिपोर्ट एक खास सर्वर में जेनरेट की जाती थी. सीबीआई इस बात की जानकारी में जुटा है कि आखिर इतने बड़े सिस्टम को शेट्टी ने किस तरह से चालाकी से अपनी ओर कर लिया था यहां तक कि जो खास सर्वर उसके नियत्रंण के बाहर था वहां भी उसने अपनी पैठ कैसे बना ली थी.
सीबीआई के अधिकारियों का कहना है कि ये संभव है कि उसने वाउचर को पीएनबी के कोर बैंकिंग सिस्टम में रिकार्ड नहीं होने दिया लेकिन जो एलसी विदेश भेजे गए वो तो वहा पीएनबी के नोस्त्रो खाते में जमा हो ही गए. उन खातों की जांच अगर प्रतिदिन नहीं तो सप्ताह में एक बार तो जरूर होती है लेकिन इसके बाद भी पीएनबी के किसी कर्मचारी ने इस पर सालों कैसे ध्यान नहीं दिया, इसका खुलासा जरुरी है.