साल 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। कोविड-19 महामारी के बाद राज्य में नगर निकाय के चुनाव भी नहीं हुए। कोरोना के बाद पहली बार सूबे में विपक्षी दल महा विकास आघाड़ी (एमवीए) और सत्तारूढ़ दल महायुति के बीच सीधी टक्वकर होनी है। शिवसेना और एनसीपी में विभाजन के बाद हो रहे लोकसभा चुनाव में पवार और ठाकरे की जमीनी पकड़ की पैमाइश होनी है। लोकसभा चुनाव उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए मायने रखते हैं क्योंकि यह चुनाव ठाकरे और पवार का राजनीतिक कद भी तय करेगा।
साल 2019-24 के बीच की अवधि में महाराष्ट्र में राजनीतिक ताकतों का पुनर्गठन हुआ है। आने वाले दिनों में इस पर और अधिक मंथन होने वाला है। कोरोना महामारी के बाद महाराष्ट्र में 29 महानगरपालिका के चुनाव नहीं हुए, जहां राज्य की 13 करोड़ आबादी का 60-65 फीसदी हैं। मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के अलावा महानगर क्षेत्र की आठ अन्य महानगरपालिका ठाणे, वसई-विरार, मीरा-भायंदर, कल्याण-डोंबिवली, नवी मुंबई के अलावा पुणे, पिंपरी-चिंचवड़, पनवेल, नासिक, औरंगाबाद, नागपुर और अमरावती महानगरपालिका के चुनाव का मामला अदालत में लंबित हैं। शिवसेना और एनसीपी में विभाजन होने से कई बड़े और दिग्गज नेताओं ने पाला बदला है। ऐसा होने से शहरों में किसकी जमीन कितनी मजबूत है, इसका वास्तविक आंकलन नहीं किया जा सका है। इसलिए अंदाजा लगाया जा रहा है कि सूबे में होने वाले पांच चरण के चुनाव में काफी आश्चर्यजनक बदलाव देखने को मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र दूसरा अहम राज्य हैं जहां सर्वाधिक लोकसभा की 48 सीटें हैं। प्रदेश में दो प्रमुख राजनीतिक धुरी है। एक भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति और दूसरा विपक्षी दलों के समूह का INDI गठबंधन, जिसे महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी (एमवीए) के रूप में जाना जाता है। वैसे भी राज्य में पहले भी दो ही गठबंधन थे शिवसेना-भाजपा और कांग्रेस-एनसीपी। अब भी देखा जाए तो गठबंधन दो ही आमने-सामने हैं, विपक्ष की महा आघाड़ी और सत्तारूढ़ दल की महायुति।