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तो क्या एक और चुनाव के मुहाने पर खड़ी है दिल्ली, बागी विधायकों से सरकार पर संकट!

नई दिल्ली। सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के लिए आज का दिन संकटभरा है क्योंकि चुनाव आयोग ने लाभ पद के मामले में उसके 20 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की सिफारिश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से की है. अगर कोविंद इस सिफारिश को मान लेते हैं तो दिल्ली से 20 सदस्यों की सदस्यता चली जाएगी.

ऐसे में 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में आप पार्टी के विधायकों की संख्या 66 से घटकर सीधे 46 पर आ जाएगी. विधायक कपिल शर्मा बागी हो चुके हैं. जबकि कुमार विश्वास राज्यसभा में नहीं भेजे जाने से नाराज हैं और बताया जाता है कि उनके पास करीब 10 विधायकों का समर्थन हैं और मौका देखते हुए वह पाला बदल सकते हैं. ऐसा होने पर केजरीवाल सरकार पर संकट बरकरार रहेगा. दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी के 4 विधायक हैं. 7 फरवरी, 2015 को विधानसभा चुनाव कराए गए थे जिसमें अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी.

हालांकि आप पार्टी ने चुनाव आयोग की सिफारिश के बाद हाईकोर्ट जाने का ऐलान किया है. आने वाले समय में दिल्ली का राजनीतिक घटनाक्रम बेहद रोमांचक होने वाला है, देखना होगा कि यहां की राजनीति किस तरफ रूख करती है.

फिराक में हैं भाजपा-कांग्रेस!

दूसरी ओर, राष्ट्रपति अगर इस सिफारिश को मान लेते हैं तो 20 सदस्यों की सदस्यता चली जाएगी, ऐसी स्थिति में दिल्ली में फिर से चुनाव का माहौल बनेगा. इन सीटों पर चुनाव होने की स्थिति में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के पास दिल्ली विधानसभा में अपनी स्थिति बेहतर करने का मौका मिल सकता है. लगातार 15 साल तक शासन करने के बाद कांग्रेस को 2013 में करारी हार मिली और 8 सीटों पर सिमट गई थी.

इसके बाद 2015 में फिर चुनाव हुए तो इस बार कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी. जबकि सत्ता में वापसी की वाट जोहने वाली भाजपा महज 3 सीट पर ही जीत हासिल कर सकी. बाद में उसके खाते में एक और सीट आ गई. राजौरी गार्डन सीट से आप विधायक जनरैल सिंह ने पंजाब से विधानसभा चुनाव में लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था. फिर उपचुनाव में ये सीट भाजपा के पास चली गई.

आप का 2014 में दांव रहा नाकाम

4 दिसंबर, 2013 को हुए चुनाव में भाजपा को आस थी कि वह सत्ता में लौटेगी, लेकिन त्रिशंकु विधानसभा ने उसके अरमानों पर पानी फेर दिया. 31 सीट हासिल कर वह राज्य में शीर्ष पार्टी बनकर उभरी जरूर, लेकिन 8 सीट हासिल करने वाली कांग्रेस ने 28 सीट जीतने वाली आप पार्टी को अपना समर्थन दे दिया, जिससे अरविंद केजरीवाल ने सरकार बना ली.

हालांकि यह सरकार महज 49 दिन ही चल सकी क्योंकि केजरीवाल ने जनलोकपाल बिल पास नहीं कर पाने की नाकामी को स्वीकारते हुए इस्तीफा दे दिया. कहा यह गया कि केजरीवाल दिल्ली में मिली चुनावी कामयाबी से उत्साहित होकर 2014 में आम चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने का दाव चलना चाह रहे थे, लेकिन इस बार वो नाकाम रहे.

करीब एक साल के इंतजार के बाद दिल्ली ने फिर से विधानसभा चुनाव (2015) देखा और इस बार आप पार्टी ने सारे कयासों को धता बताते हुए 70 में से 67 सीट अपने नाम कर ली. भाजपा और कांग्रेस सिर्फ मूक दर्शक बनकर रह गए. केजरीवाल ने बंपर बहुमत के साथ अपने दम पर दूसरी बार सरकार बना ली.

बड़े दलों को नहीं पची आप की यह जीत

राष्ट्रीय राजधानी में आप जैसी नई नवेली पार्टी की इतनी बड़ी जीत किसी भी राष्ट्रीय दल को रास नहीं आई. बीच-बीच में ऐसी खबरें आती रहीं कि बड़े राजनीतिक दल आप सरकार को गिराने की फिराक में रहें. लेकिन हालात कभी उनके पक्ष में नहीं गए.

राजनीतिक हलकों में चर्चा यह भी रही कि पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा के दम पर विपक्षी दल आप सरकार को गिराना चाहते थे, पर कामयाबी नहीं मिली.

हालांकि इस बीच आप सरकार ने मार्च 2015 में एक ऐसी गलती कर दी, जिसका नुकसान पार्टी को आगे करना पड़ सकता है. केजरीवाल सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया. जिसको लेकर प्रशांत पटेल नाम के वकील ने लाभ का पद बताकर राष्ट्रपति के पास शिकायत करते हुए इन विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी. फिर यहीं से विपक्षी दलों को एक मौका मिल गया कि इस बहाने विधायकों को अयोग्य कर सरकार के बंपर बहुमत को कुछ हद तक कम किया जाए. करीब 3 साल पुराने लाभ का पद मामले में चुनाव आयोग के अधिकारियों ने अब तक इसे टाले रखा. लेकिन वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त एके ज्योति ने साहस दिखाया और अपने रिटायर से पहले इस मामले पर फैसला लेना वाजिब समझा.

बागी तेवर से संकट में सरकार!

22 जनवरी को रिटायर होने से पहले अपने आखिरी कार्य दिवस पर उन्होंने 20 सदस्यों की सदस्यता खारिज किए जाने की सिफारिश कर दी. आप पार्टी इसे फैसले को कोर्ट में ले जाएगी, जबकि भाजपा और कांग्रेस चाहेगी कि राष्ट्रपति इस पर जल्द फैसला लें और सारी स्थिति पूरी तरह से साफ हो जाए.

दूसरी तरफ आप पार्टी अपने विधायकों के बागी तेवर को लेकर काफी परेशान है. पार्टी के कई बड़े सदस्य गुजरे 3 सालों में साथ छोड़ चुके हैं या फिर साथ छोड़ने की फिराक में हैं. मुख्यमंत्री केजरीवाल के सामने एक दिक्कत और है कि वे खुद अपने 4 मंत्री को हटा चुके हैं, मौका देखकर वे भी बगावत का दामन थाम सकते हैं. 4 हटाए गए मंत्रियों के बगावत करने और 20 विधायकों की सदस्यता जाने की सूरत में बहुमत का आंकड़ घटकर 42 तक आ जाएगी. वहीं पार्टी से नाराज चल रहे कुमार विश्वास के बारे में माना जा रहा है कि उनके पास करीब 10 विधायकों का समर्थन हैं और मौका देखते हुए वह पाला बदल सकते हैं.

स्थानीय निकाय चुनावों में हार चुकी है आप

वहीं दिल्ली में हुए स्थानीय निकायों में आप पार्टी का खराब प्रदर्शन भी उसे खासा परेशान कर रहा है. पिछले साल अप्रैल में हुए चुनाव में उत्तरी दिल्ली नगर निगम में भाजपा को 64 सीट मिली जबकि आप को 21 सीट हासिल हुई. वहीं दक्षिण दिल्ली नगर निगम में भाजपा को 70 और आप को 16 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 12 सीटों पर सिमट गई.

यही हाल पूर्वी दिल्ली नगर निकाय चुनाव में हुआ, जहां भाजपा को 47, आप को 13 और कांग्रेस को 3 सीटें हासिल हुईं. आप पार्टी की सरकार रहते हुए भाजपा ने लगातार तीसरी बार दिल्ली नगर निकाय चुनाव में बहुमत हासिल की.

20 विधायकों की सदस्यता जाने की सूरत में दिल्ली में उपचुनाव कराए जाएंगे ही. साथ ही उपरोक्त की सारी इन परिस्थितियां आपस में जुटती हैं तो नए सरकार के अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है और दिल्ली को नए चुनाव का सामना करना पड़ सकता है, फिलहाल इसमें अभी वक्त है.