गौ हत्या का मामला भारत में हमेशा से विवादित रहा है। हिंदू समुदाय के धार्मिक संत-महात्मा हमेशा से गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने का कानून लाने की मांग करते रहे हैं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह मांग हमेशा पीछे छूट जाती रही है।
विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात खूब जोरशोर तरीके से उठाते रहे हैं, लेकिन मुस्लिम सांप्रदायिकता का विरोध कर अपनी राजनीति करने वाली भाजपा भी गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात पुरजोर तरीके से नहीं कह पाती है। इसका मूल कारण राजनीतिक मजबूरी ही माना जाता है।
इसी बीच, लोकसभा चुनावों के ठीक पहले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने यह मांग की है कि गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने का कानून तत्काल पारित किया जाए। उन्होंने जनता से भी यह अपील की है कि वे केवल उन्हीं राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को वोट करें जो गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने का कानून बनाने का समर्थन करते हों।
योगी की कोशिश
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही राज्य में गौ हत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध लग गया है। यूपी सरकार गोवंश को पालने के लिए जगह-जगह पर गोशालाएं-बाड़ों का इंतजाम कर उनमें गोवंश को रखने पर आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रही है। इससे गोवंश की हत्या के साथ-साथ उनके आवारा पशुओं के रूप में घूमने पर भी रोक लगी है। लेकिन इसके बाद भी घूमते गोवंश बताते हैं कि इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
गौवंश पर काम करने वाले विशेषज्ञ बताते हैं कि जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तब किसानों के लिए यह एक भार बन जाती है। उनके खानपान पर होने वाला खर्च उन्हें भारी पड़ने लगता है। वे उसे किसी भी मूल्य पर बेचकर कुछ पैसा पाना चाहते हैं। इस स्थिति में गोवंश को कसाइयों के द्वारा खरीदे जाने और उनकी हत्या होने की आशंका बढ़ जाती है। खेती के ज्यादातर कामकाज में मशीनों-ट्रैक्टर के उपयोग ने बैलों-सांड़ों को भी समाज के लिए अपेक्षाकृत बहुत अनुपयोगी बना दिया है। यही कारण है कि ये गौवंश कसाइयों के निशाने पर आ जाते हैं।