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जिग्नेश मेवाणी तलवार की धार पर चल रहे हैं, जरा सा फिसले तो खत्म हो जाएंगे

देश की राजनीति में पिछले कुछ समय से एक बदलाव देखने को मिल रहा है, दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव के बाद संसद में विपक्ष लगभग खत्म हो गया है, उसके बाद विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी की लगातार जीत से विपक्ष हैरान और परेशान है, इस से विपक्ष के नेताओं में खलबली है, उनके पास फिलहाल कोई रणनीति नहीं है जिस से बीजेपी और मोदी को रोका जा सके, लेकिन यगलतफहमी भी हो सकती है, पिछले कुछ समय से जिस तरह से बीजेपी शासित राज्यों में जातिगत आंदोलन शुरू हो रहे हैं उस से ये कहा जा सकता है कि विपक्ष परदे के पीछे से अपनी तैयारियां कर रहा है। हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और इनसे पहले जेएनयू कांड, जैसे एक सोचा समझा प्ले खेला जा रहा है।

गुजरात में हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी का आंदोलन चुनाव से काफी पहले ही शुरू हो गया था, इन दोनों ने बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया, विचारधारा औऱ जातियों की बात करने वाले इन दोनों ही नेताओं ने चुनाव के समय में कांग्रेस को समर्थन दे दिया. इस तरह से ये कांग्रेस की विचारधारा के समर्थक बन गए। इनमें से खास तौर पर जिग्नेश ज्यादा आक्रामक हं. वो कन्हैया कुमार की राह पर चल रहे हैं। हाल ही में पुणे के भीमा कोरेगांव हिंसा में जिग्नेश का भी नाम आया कि उन्होंने भड़काउ भाषण दिया था। जिग्नेश के खिलाफ शिकायत की गई, पुलिस जांच कर रही है. इसके बाद से जिग्नेश भड़के हुए हैं। वो मोदी पर हमला कर रहे हैं, हर बात के लिए नरेंद्र मोदी को दोष दे रहे हैं.

भीमा कोरेगांव मामले में जिग्नेश के रोल को लेकर फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री ने उनको चुनौती दी है, अग्निहोत्री ने सोशल मीडिया के जरिए जिग्नेश मेवाणी को चुनौती दी है कि वो उनके साथ बहस करें, और ये साबित करें कि भीमा कोरेगांव में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। इस चुनौती का अभी तक जिग्नेश ने कोई जवाब नहीं दिया है, लेकिन एक बात तो साफ हो रही है कि जिग्नेश तलवार की धार पर राजनीति कर रहे हैं, जरा सा फिसले तो उन पर ठप्पा लगने में देर नहीं लगेगी, युवा हैं दलित समाज के नेता कहते हैं खुद को, ऐसे में उनसे जितनी उम्मीदें हैं वो टूट जाएंगी। समाज में कुछ गलत है तो उसका विरोध होना चाहिए, लेकिन सालों से चली आ रही समस्याओं के लिए किसी एक ही आदमी को दोष देना उचित नहीं होगा।

जिग्नेश एक खास समुदाय की राजनीति करते हैं, वो कहते हैं कि अतिवादी सोच रखना जरूरी हो गया है, सहारनपुर हिंसा मामले में आरोपी चंद्रशेखर और उसकी भीम आर्मी का समर्थन करते हैं, ऐसे में जिग्नेश को ये समझना होगा कि उनकी राजनीति अब दलितों की राजनीति नहीं रही है, वो धीरे धीरे उन लोगों के साथ दिख रहे हैं जिन पर गंभीर आरोप हैं। कन्हैया से सबक लेना चाहिए जिग्नेश को, जो सत्ता विरोध होने के बाद भी, देश की खिलाफत करने वालों का विरोध करते हैं, कितने लोगों ने जेएनयू कांड के बाद उमर खालिद और कन्हैया को साथ साथ देखा है। इस बात को संकेत के तौर पर जिग्नेश को देखना चाहिए। राजनीति बहुत बारीक लाइन पर होती है ये बात जिग्नेश को जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना अच्छा नहीं तो उनके जैसे नेता भीड़ में गुम हो जाते हैं।