बसपा सांसद रितेश पांडेय 25 फरवरी को भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देकर पार्टी उनका लाभ उठाने की कोशिश करेगी। वे पूर्वांचल में भाजपा के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर उभर सकते हैं। इसी लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें पूर्वांचल में युवाओं को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी दी जा सकती है। उन्हें अंबेडकर नगर की लोकसभा सीट पर दोबारा उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इससे भाजपा के लिए इस मुश्किल सीट पर जीत आसान हो सकती है।
कोई नेता ब्राह्मण समुदाय का चेहरा नहीं बन पाया
दरअसल, भाजपा में अभी भी कोई नेता ब्राह्मण समुदाय का चेहरा नहीं बन पाया है। मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्रा के युग के बाद पार्टी का कोई भी नेता इस कद तक नहीं पहुंच पाया कि पार्टी उसे ब्राह्मण नेता के तौर पर पेश कर सके और चुनावों में उसका लाभ मिल सके। इस बीच लक्ष्मीकांत वाजपेयी और दिनेश शर्मा जैसे कुछ नेताओं को मजबूत कर चेहरा बनाने की कोशिश भी की गई, लेकिन वे ज्यादा प्रभावी और भरोसेमंद ब्राह्मण चेहरे के तौर पर नहीं उभर पाए, जिसे ब्राह्मण अपना नेता मान सकें और जिनके नाम पर भाजपा के साथ लामबंद हो सकें।
कमी को भरने की कोशिश
बसपा से ब्रजेश पाठक जैसे लोगों को पार्टी में लाकर भी इसी कमी को भरने की कोशिश की गई थी। वे पार्टी के लिए प्रभावशाली तरीके से काम भी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी ब्राह्मण नेताओं को ज्यादा प्रभावशाली भूमिका में लाकर यूपी के लगभग आठ फीसदी ब्राह्मण वोट बैंक को अपने साथ साधना चाहती है।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उठाती रही फायदा
भाजपा के पास प्रभावी ब्राह्मण नेता न होने का लाभ समय-समय पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उठाती रही है। मायावती ने 2007 में दलितों, मुसलमानों के साथ ब्राह्मणों को अपने साथ साधने का काम कर लिया था। इससे बसपा अकेले दम पर यूपी में सरकार बनाने में सफल हो गई थी। 2012 में यही काम समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव ने किया और वह अपने दम पर सत्ता में आने में कामयाब हो गई।