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तीन तलाक बिल: राज्यसभा में अपराध को जमानती बनाए जाने की मांग कर सकती है कांग्रेस

नई दिल्ली। लोकसभा में पास हो चुका तीन तलाक बिल इस सप्ताह राज्यसभा में पेश किया जाना है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने लोकसभा में इस बिल का समर्थन तो किया, लेकिन उसमें कुछ खामियां भी गिनाई थीं। कांग्रेस चाहती थी कि बिल में एक बार में तीन तलाक कहने को ‘अपराध’ बताने वाले क्लॉज को हटा दिया जाए, लेकिन माना जा रहा है कि राज्यसभा में पार्टी अपना स्टैंड बदल सकती है।

दरअसल, इस विधेयक में एक बार में तीन तलाक को अवैध करार दिया गया है और इसे दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखते हुए तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही इसे गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस अब सरकार से मांग कर सकती है कि इसे जमानती अपराध बनाया जाए।

कांग्रेस का मानना है कि बिल में किए गए प्रावधान के तहत शौहर का जेल जाना तय होगा और ऐसे में इसका असर पीड़ित महिला को मिलने वाले मुआवजे पर पड़ सकता है। साथ ही दोनों के बीच सुलह की कोशिशों को भी इससे झटका लग सकता है। सूत्रों का यह भी कहना है कि कांग्रेस नेतृत्व सिर्फ इस सीमित मुद्दे पर फोकस करते हुए बाकी बिल को पूरा समर्थन देने के पक्ष में है।

पार्टी में इस मुद्दे पर चल रहे मंथन से वाकिफ सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी की छवि को लेकर काफी सचेत हैं। वह नहीं चाहते कि कांग्रेस तीन तलाक बिल की राह में रोड़े के रूप में नजर आए। राहुल को इस बात का अहसास है कि उनके पिता राजीव गांधी के शासनकाल में हुए शाह बानो प्रकरण ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है।

बता दें कि पिछले सप्ताह लोकसभा में पारित हुए तीन तलाक बिल में ‘अपराध’ वाले क्लॉज का कांग्रेस ने विरोध करते हुए इसे संसदीय समिति के पास भेजे जाने की मांग की थी। हालांकि जब बिल के लिए वोटिंग करने की बारी आई, तो उसने किसी सांसद या धर्मनिरपेक्ष संगठनों द्वारा सुझाए गए संशोधनों का समर्थन नहीं किया।

राज्य सभा में कांग्रेस का रुख सरकार के लिए बेहद अहम रहने वाला है, क्योंकि उच्च सदन में मोदी सरकार के पास बहुमत नहीं है। ऐसे में अन्य विपक्षी दल बिल के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं। हालांकि कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा बिल के समर्थन के पक्ष में है, लेकिन अन्य विपक्षी दलों के स्टैंड देखते हुए पार्टी का फैसला प्रभावित हो सकता है। अगर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी या लेफ्ट पार्टियां सरकार पर इस बिल को संसदीय समिति के पास भेजने का दबाव डालते हैं तो विपक्षी एकता के नाम पर कांग्रेस उनके साथ आ सकती है।