बुढ़ापे की मानसिक समस्याओं को समझने के लिए भारत में किए एक अध्ययन से पता चला है कि देश का हर चौथा बुजुर्ग न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर से जूझ रहा है। यानी देश में करीब 3.4 करोड़ बुजुर्ग इस समस्या से पीड़ित हैं। जो उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या को प्रभावित कर रहा है। यह जानकारी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नए अध्ययन में सामने आई है। अध्ययन के नतीजे जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित हुए हैं।
न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर कोई एक बीमारी न होकर मानसिक समस्याओं का एक समूह है। इसमें मनोभ्रंश (डिमेंशिया), याददाश्त कमजोर होना, सोचने, समझने, निर्णय लेने और सीखने की क्षमता पर असर पड़ने के साथ-साथ मानसिक रूप से कमजोरी आना जैसी समस्याएं शामिल हैं। आमतौर पर इसके लक्षणों में याददाश्त का चले जाना, भाषा के इस्तेमाल और रोजमर्रा के कामों में समस्या के साथ-साथ व्यक्तित्व में बदलाव और दिग्भ्रमित होना शामिल हैं।
18 राज्यों के 4,096 लोगों पर किया गया अध्ययन
अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने आयु के आधार पर मनोभ्रंश के प्रसार को समझने के लिए इनमें से 4,096 प्रतिभागियों का चयन किया था। इसमें जम्मू और कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु समेत 18 राज्यों के प्रतिभागी शामिल थे।
उम्र के साथ बढ़ रही हैं समस्याएं
भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या करीब 13.8 करोड़ है। यानी देश के करीब एक चौथाई बुजुर्ग इस समस्या से पीड़ित हैं। देश की कुल आबादी के करीब 10.5 फीसदी लोग उम्रदराज हैं। अनुमान है कि 2050 तक देश में बुजुर्गों की आबादी बढ़कर 34.7 करोड़ हो जाएगी और कुल आबादी का 20.8 फीसदी हिस्सा 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का होगा।
कम पढ़े-लिखे व अशिक्षितों में ज्यादा समस्या
शोधकर्ताओं के अनुसार 2.4 करोड़ बुजुर्गों में न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर के हल्के लक्षण दिखे। जबकि 99 लाख बुजुर्गों में यह समस्या अधिक गंभीर पाई गई। यानी देश के 17.6 फीसदी बुजुर्गों में न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर के हल्के लक्षण हैं जबकि 7.2 फीसदी बुजुर्गों में यह समस्या बेहद गंभीर है। 80 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों और उन लोगों में जिन्होंने कम शिक्षा हासिल की है उनमें इन विकारों का प्रसार कहीं अधिक था।