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सोनिया गाँधी की शरपरस्ती में पूरी कांग्रेस पार्टी ही एकबार फिर हिन्दू और राम विरोधी हो गई है

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में थी, पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी

लखनऊ। मोहन दाश कर्मचन्द्र गांधी और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को हमेसा से हिन्दू विरोधी माना जाता रहा है। देश के बंटवारे समय मोहन दाश कर्मचन्द्र गांधी का जो ब्यवहार हिन्दुओं के प्रति था और आगे चलकर जवाहरलाल नेहरू का भी हिन्दुओं के प्रति हीन भावना का होना हार कोई जनता है। जवाहरलाल नेहरू के बाद इन्दीरा गांधी और राजीव गांधी ने अपना नजरिया हिन्दुओं को लेकर काफी बदला और सकारात्मक किया।

इन्दीरा गाँधी भी चाहती थी कि अयोध्या में भब्य राम मंदिर बने, राजीव गाँधी ने तो कोर्ट के आदेश को दरकिनार करके राममंदिर में लगे ताले को खुलवा दिया था लेकिन वर्तमान में सोनिया गाँधी की शरपरस्ती में पूरी कांग्रेस पार्टी ही एकबार फिर हिन्दू और राम विरोधी हो गई है।

आज छह दिसंबर है आैर इसके एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि मामले में चल रही सुनवार्इ को अब अगले साल यानी 2018 की फरवरी महीने में शुरू करने का आदेश दिया है। यह मामला 1885 में ही कानूनी दांव-पेंच के पचड़े में फंस गया था अर्थात जिस साल देश की आजादी के लिए भारत में कांग्रेस की स्थापना की गयी थी, उसी समय रामजन्मभूमि का मामला अदालत में चला गया था। तब से लेकर आज तक यह मामला निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट  तक में  सुलझ नहीं सका है।

491 साल से चल रहा है विवाद : राम मंदिर के विवाद को लोग 1985 के बाद से जानते होंगे, लेकिन हकीकत यह है कि राम जन्मभूमि का विवाद बाबर के शासनकाल के समय से ही शुरू हो गया था।बाबर के बाद  भारत मे बाबर के वंशजों के तौर पर कर्इ लोगों ने शासन किये। अंग्रेजों ने भी उंसके बाद करीब दो सौ साल तक भारत पर अपना आधिपत्य जमाये रखा। अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद अब तक विभिन्न राजनीतिक दलों के कर्इ सरकारें भी बनीं बावजूद इसके इन 491 सालों के दौरान इसका विवाद आज तक सुलझ नहीं पाया है।

मामले का राजनीतिकरण : राम मंदिर मुद्दे को लेकर काग्रेस पार्टी सुन्नी समुदाय की आड़ में इस मुद्दे को और लंबा खींचना चाहती है। देश मे इसे भारतीय जनता पार्टी के मुद्दे के नाम से जाना जा रहा है। कांग्रेस को डर है कि यदि यह मुद्दा हल हो गया तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल जाएगा। गुजरात चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस नेता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता ने इसे लंबे समय तक टालने पर दबाव बनाया था।जबकि कुछ भाजपाइयों का मत है कि राम मंदिर मुद्दा निकलने के बाद उनका हिदू कार्ड पर चुनाव अभियान भविष्य में फीका पड़ सकता है।

इंदिरा गांधी की मंदिर निर्माण की इच्छा : अपने शासन के आरंभिक काल में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी पूरी तरह से नास्तिक थीं। कहा जाता है कि  वर्ष 1977 के आम चुनाव में मिली अप्रत्याशित  हार के बाद संभवतः उनके मन में धर्म के प्रति आस्था पैदा हो गयी थी। ऐसा माना जाता है कि 1977 में मिली करारी हार के बाद से इंदिरा गांधी को मुस्लिमों के राजनीतिक समर्थन का भरोसा उठ गया था, और अब उनका कुछ झुकाव हिंदू समुदाय की तरफ हो चला था।  हिंदू धर्म के प्रति आये झुकाव के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के अयोध्या में सदियों से विवादित स्थल रामजन्मभूमि के निर्माण करवाने की इच्छा भी रखती थीं।

कई लोगों का मानना है कि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा विवादित परिसर से सटी जमीन के राम-कथा पार्क बनाने के लिए अधिग्रहण को इंदिरा गांधी की सहमति थी।  वर्ष 1984 में बनी राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के महामंत्री दाऊ दयाल खन्ना कांग्रेस और अध्यक्ष महंथ अवैद्य नाथ हिंदू महासभा के नेता थे। अक्टूबर के अंत में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन कुछ दिनों के लिए थम गया।

दो साल बाद 01 फरवरी, 1986 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार की सहमति से फैजाबाद के जिला जज ने विवादित परिसर का ताला खुलवा दिया। दूरदर्शन पर खबरें दिखायी गयीं कि अब हिंदू समुदाय के लोग मस्जिद के अंदर बने मंदिर में जाकर दर्शन और पूजा कर सकते हैं।

मामले का हल कोई नही चाहता : ताला खुलने के बाद  से ही राम जन्म भूमि मंदिर विवाद गहराने लगा। विभिन्न हिदू और मुस्लिम संगठनों का गठन होने लगा और मंदिर व मस्जिद के नाम पर चंदे का धंधा शुरू हो गया । हिन्दू- मुस्लिम  सबकी  एक तरह से दुकाने चलने लगी। छोटे छोटे नेता और वकील भी प्रतिष्ठित हो गए। बहराल मामले से जुड़े वकील भी इस मामले को सुलझाने के पक्ष में नही है अन्यथा सबसे अधिक आय वाला उनका केस खत्म हो जाने के साथ उनकी दुकान भी बंद हो सकती है।