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अलाउद्दीन खिलजी और मलिक काफूर की प्रेम गाथा…. आइये इस प्रेम गाथा पर भी एक फिल्म बनाते हैं…..

अलाउद्दीन खिलजी, खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा और दामाद था। अलाउद्दीन खिलजी ने राज्य को पाने की चाह में साल 1296 में अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या कर दी थी और दिल्ली में स्थित बलबन के लाल महल में अपना राज्याभिषेक सम्पन्न करवाया।अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था और उसने अपना साम्राज्य दक्षिण भारत के मदुरै तक फैला दिया था। कहा जाता है कि उसके बाद कोई भी शासक इतना साम्राज्य स्थापित नहीं कर पाया था। खिलजी का नाम राजस्थान के इतिहास में भी दर्ज है।

दिल्ली सल्तनत के दूसरे शासक खिलजी ने 1296 से 1316 तक दिल्ली पर राज किया था। इतिहास खिलजी को जैसे भी याद करे लेकिन साहित्य में खिलजी एक खलनायक है जो राजपूत रानी पद्मिनी को पाने के लिए क्रूरता की सभी सीमाएं पार कर गया। खिलजी से बचने के लिए पद्मावति कई हजार राजपूत रानियों के संग सती हो गई थी। पद्मावति की कहानी को बहुत से लोग मिथकीय मानते हैं लेकिन अल्लाउद्दीन खिलजी की एक सच्ची प्रेम कहानी ऐसी है जिसे लेकर इतिहासकारों को कोई शक नहीं है। ये कहानी है खिलजी के एक काले गुलाम मलिक काफूर से प्यार की।

ये कहानी किसी कवि की कल्पना नहीं है। इसका जिक्र किया है दिल्ली सल्तनत के प्रमुख विचारक और लेख जियाउद्दीन बरनी ने। बरनी की चर्चित किताब “तारीख-ए-फिरोजशाही” में खिलजी और काफूर के प्यार का खुला जिक्र है। माना जाता है कि काफूर को खिलजी के सिपहसालार नुसरत खान ने 1297 में गुजरात विजय के बाद एक हजार दीनार में खरीदा था। इसीलिए काफूर का एक नाम ‘हजारदिनारी’ भी था। खिलजी काफूर की कमनीयता को देखकर मुग्ध हो गया था। काफूर के अंडकोष (टेक) काट कर उसे  िहजड़ा बनाया गया और उसको इस्लाम कबूल करवाया गया।

काफूर केवल खिलजी का प्रेमी नहीं था। वो एक बहादुर योद्धा भी था। उसने खिलजी के लिए मंगोलों के साथ और दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण युद्धों में हिस्सा लिया। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार काफूर से खिलजी को इतना प्यार था कि उसने उसे अपने शासन में दूसरा सबसे अहम ओहदा (मलिक नायब) दिया था। इन सालों में ।

लेकिन खिलजी के इस प्यार का अंतिम नतीजा क्या रहा? इतिहासकारों का मानना है कि काफूर ने खिलजी को प्यार में धोखा दे दिया था।उसने अल्लाउदीन खिलजी को मरवा कर शासन की पूरी कमान खुद के हाथों में ले ली लेकिन अंत में  खिलजी के तीसरे बेटे मुबारक के हाथों मारा गया था।