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रामलीला के मंचन में ‘हनुमान’ को आया हार्ट अटैक, प्रभु श्रीराम के चरणों में तोड़ दिया दम

जन्म-जन्म मुनि जतन कराहीं, अंत राम मुख आवत नाहीं। रामचरित मानस में वर्णित इन चौपाइयों के अनुसार व्यक्ति जीवन के अंतिम समय राम का नाम मात्र का स्मरण कर ले तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है, पर श्रीरामलला प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर भिवानी में जो हुआ वह दुर्लभ है। अयोध्या में श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा के दौरान भिवानी के जवाहर चौक पर रामलीला मंचन के दौरान हनुमान की भूमिका निभा रहे एमसी कालोनी निवासी हरीश ने भगवान राम की गोद में ही दम तोड़ दिया।

जब तक वह प्रभु के चरण में गिरे थे तो लोग इसे लीला का हिस्सा मान रहे थे। जब संभले तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। सोमवार को जब अयोध्या में श्रीरामलला प्राण प्रतिष्ठा के उत्सव और उमंग में हर कोई उत्साहित था, ठीक उसी समय जवाहर चौक में चल रही रामलीला में हनुमान के किरदार निभा रहे 62 वर्षीय एमसी कॉलोनी निवासी हरीश कुमार प्रभु चरणों में ऐसे लीन हुए कि फिर कभी नहीं उठे।

मंच पर श्रीराम की गोद में ही हरीश के प्राण पखेरू प्रभु में विलिन हो गए। हरीश 25 वर्षों से न्यू बासुकीनाथ रामलीला कमेटी भिवानी में हनुमान का किरदार निभाते आ रहे थे। वे बिजली विभाग में जेई के पद से सेवानिवृत्ति के बाद भी रामलीला मंचन से अनवरत जुड़े हुए थे।
रामलीला में लक्ष्मण बनने वाले सुरेश सैनी ने बताया कि हरीश को बचपन से ही शौक था कि वह रामलीला में काम करे। इसी शौक की वजह से वह रामलीला कमेटी से जुड़े थे। वह अभिनय के दौरान प्रभु श्रीराम में मग्न हो जाता। सोमवार को भी रामलीला कमेटी कलाकारों ने ये आयोजन किया तो वह बहुत उत्साहित थे।

जब मंच पर उन्होंने अभिनय शुरू किया तो वे पूरी तरह से प्रभु भक्ति में डूब गए। जब उन्होंने अयोध्या वापसी के बाद प्रभु श्री चरणों में नमन किया तो हर कोई यही सोच रहा था कि वे भावुक हो गए हैं, इसलिए काफी देर से नहीं उठे। जब साथी कलाकारों ने उन्हें उठाने का प्रयास किया तो वे बेसुध हो चुके थे। उनकी प्रभु भक्ति ने काफी देर तक उपस्थित भक्तों को असमंजस में डाले रखी लेकिन बाद में कलाकार साथी उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे तो पता चला कि वे इस दुनिया से अलविदा कह चुके हैं।

मिलनसार थे हरीश
लोगों का कहना है कि हरीश काफी खुशजिजाज और अपने किरदार की तरह ही मिलनसार व्यक्ति थे। वे हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे रहते थे। अपने किरदार से इतने प्रभावित रहते कि वे हमेशा ही खुद को भगवान श्रीराम का सेवक मानते थे।