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‘1984’ में शिक्खो का और आपात काल में मुस्लिमों का जमकर नरसंघार किया था कांग्रेस ने

अन्याय तो अन्याय होता है। फिर चाहे वह हिन्दू के साथ हुआ हो, मुसलिम के साथ हुआ हो, सिखॊं के साथ हुआ हो या अन्य किसी समुदाय के साथ। भारत के जनतंत्र के इतिहास में अनेकॊं नरसंहार हुए हैं। करॊडॊं निर्दॊष लोगॊं की जाने भी गई हैं। उनमें से ही एक दर्दनाक घटना है तुर्कमान गॆट की जिसमें हज़ारॊं मुसल्मानॊं ने अपनी जान और संपत्ती गवाई थी। मैमुना बेगम यानी इंदिरा गाँधी ने जब जनतंत्र की हत्या कर अपनी ‘हिट्लर दीदी’ का अवतार दिखाया तो हज़ारॊं लोगॊं ने अपनी जान  गवाई थी।

कहने को तो इंदिरा प्रधान मंत्री थी लेकिन देश चलाने का काम संजय करते थे। तानाशाह संजय किसी की भी नहीं सुनते थे और चाहते थे की सब उनकी सुने। आपातकाल एक ऐसा समय था जब संजय की तानाशाही की कॊई सीमा ही नहीं रही। १९७५ में जब देश पर आपातकाल थॊपा गया तो संजय ने मुसल्मानॊं की जबरन नसबंदी करवाई थी। यह तो बहु चर्चित विषय था। लेकिन तुर्कमान गेट के बारे में काफी कम ही चर्चा हुई है। मनुकुल को लज्जित करनेवाली यह घटना ‘खान’ ग्रेस की तानाशाही का साक्ष्य है।

यूं तो ‘खान’ ग्रेस अपने को मुसल्मानॊं का मसीहा बताती हैं लेकिन तुष्टिकरण के अलावा मुसल्मानॊं के विकास के लिये उन्हॊंने कॊई भी कदम नहीं उठाएं हैं। १९७६ में दिल्ली को सुन्दर बनाने का भूत संजय पर चड़गया था। तुर्कमान गेट में मुस्लिम समुदाय रहा करती थी जिसे संजय हर हाल में खाली करवाना चाहते थे। संजय की चापलूसी करनेवालॊं ने पूरे तुर्कमान गेट को धवस्त करने का ज़िम्मा ले लिया था। शाह कमिशन के रिपोर्ट ने इसे अत्यंत हीन, भीभत्स, अमानवीय और दुर्भाग्यपुरण घटना बताया है।

करीब ७ लाख मुस्लिम परिवारॊं को अपने आशीयाने से निकालकर फेंक दिया गया। इस कार्य का बेड़ा उठाया था मशहूर अभिनेता सैफ अली खान की पहली पत्नी की माँ रुक्साना सुल्ताना ने जो की उस समय यूथ काँग्रेस की आला कमान हुआ करती थी और संजय के बहुत करीब थी। वह मुसल्मानॊं की नसबंदी जबरन करवाने में उनकी महिलाओं को उकसाती थी और पूरी बस्ती को खाली करवाने का ज़िमा भी उसने ही लिया था। लोगों को जबरन रस्ते से उठाकर नसबंदी करवाई जाती और बस्ती को खाली करने के लिए धमकी भी दी जाती थी।

जब मामला बेकाबू हो गया तो लोगॊं ने एक समिती बनाई और डीडीए के अध्यक्ष जगमॊहन से मिले और उनसे माँग किया कि सारे निर्वासित लोगॊं की एक ही बस्ती में रहने की व्यवस्ता की जाये। लेकिन जगमोहन बॊले ” क्या आप हमें पागल समझते हैं की एक पाकिस्तान को उजाड़ ने के लिए हम दूसरा पाकिस्तान बनाएंगे?” और उनकी माँग को खारिज करदिया।

तानाशाह संजय के आदेश के अन्वय तुर्कमान गेट का निकास का कार्य प्रारंभ हॊ गया। दुजाना हाऊस में लॊग इकठ्ठा हो गये और अपनी बस्ती को बचाने का प्रयास करने लगे। बड़े बड़े बुल्डॊज़र तुर्कमान गेट पे आ गये और सारी की सारी बस्ती को तहस नहस कर दिया। जब बस्ती में बुल्डोज़र चलाई जा रही थी तो संजय वहीं पास के एक हॊटल में खड़े होकर बस्ती को उजड़ते देख खुश हो रहे थे। उनकी आत्मा नहीं रोई जब लाखॊं लोगों की बस्ती क्षण मात्र में उजड़ गयी। २१ महीनॊं तक निकास का कार्य चलता रहा और लोगॊं को गाड़ियों मे भर कर जमुना किनारे फेंक दिया गया सिर्फ इसलिये की संजय को कन्नौट प्लेस से जामिया मसिज्द दिख सके। ये है मुस्लिमॊं के मसीहा!

जब निर्मम रूप से बस्ती उजाड़ी जा रही थी तब केन्द्र के अतिरिक्त पुलिस बल को नियुक्त किया गया था की अगर बच्चे और महिलाएं कार्य में बाधा डाले तो उनपर गोली चलाई जाये। पूरी बस्ती की महिलाएं और बच्चे एक जगह इकट्टा हुए थे और अपने घरों को मिट्टी में मिलते देख तिलमिला रहे थे। इतने में कॊई अनामिक व्यक्ती( नेहरू ब्रिगेड) पुलीसॊं पर पथराव करता है और इसी की प्रतीक्षा कर रही थी पुलिस। पुलिस ने लोगॊं पर अंधाधुंध गॊलियाँ चलानी शुरू करदी।

लोग जान बचाने के लिये पास की मस्जिद की तरफ़ भाग गये। लेकिन पुलिस उनका वहाँ भी पीछा करती रही और उनके साथ  मार पीट भी की गयी । इतना ही नहीं जब घायल लोग सहायता की भीक माँग रहे थे तब वे मस्जिद के पैसे चुराने में व्यस्त थे। कितना शर्मनाक व्यवहार था उनका। गेट की हवा में लॊगॊं की चीख और अश्रुवायू भरे हुए थे और संजय के कानॊं मे जूँ तक नहीं रेंग रही थी।पुलिस घर में घुसकर लूट पाट जैसे घिनॊने अपराध में लगी हुई थी। संजय चुप थे। कैसा हृदय विद्रावक घटना हॊगी जब औरतॊं  और बच्चॊं पर बेरहमी से बुल्डॊज़र चलायी गयी हॊगी और उनपर अत्याचार किए  गये हॊंगे।

यह घटना १९१९ के  जलियनवाला बाग कांड के जैसी ही थी । लेकिन इसकी कहीं पर भी चर्चा नहीं हुई , न गुनहगारॊं पर आज तक कोई करवाई हुई है। आये दिन काँग्रेस मुसल्मानॊं को लुभाने के लिए नये बहाने डूँढती है। लेकिन कभी आपकॊ यह नहीं बताती की तुर्कमान गेट में मुसल्मानॊं के साथ उसने कैसा दुर्व्यवहार किया था। तुर्कमान गेट के घटना से त्रस्त परिवारॊं के परिजन आज भी हमारे बीच हैं अपनी दुख भरी कहानी हमें सुनाने के लिए। क्या काँग्रेस में इतनी हिम्मत है की वे उन्हें सुन सके?