अफ्रीकी देश युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने प्रवासी भारतीय लोगों के योगदान की सराहना की है। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था के लिए दक्षिण एशियाई समुदाय, विशेष रूप से भारतवंशी लोगों की जमकर सराहना की। मुसेवेनी ने राजधानी कंपाला में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के 19वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। उन्होंने पूर्व सैन्य शासक ईदी अमीन की गलतियों के बारे में भी बात की। अमीन ने युगांडा में बसे एशियाई लोगों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इनमें अधिकांश भारतीय नागरिक थे।
बता दें कि युगांडा को 70 साल पहले NAM देशों के समूह में शामिल किया गया था। 1964 में मिस्र की राजधानी काहिरा में आयोजित दूसरे शिखर सम्मेलन में युगांडा को गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की सदस्यता मिली थी। 1971 से 1979 तक लगभग नौ साल अमीन युगांडा के तीसरे राष्ट्रपति रहे। शिखर सम्मेलन के दौरान उनके कार्यकाल से जुड़े विवाद का जिक्र करते हुए मुसेवेनी ने कहा कि NAM देश भी युगांडा की तरह गलतियां करते हैं। हमारे पास भी ईदी अमीन नाम का शख्स था।
उन्होंने कहा कि अमीन ने हमारे एशियाई लोगों (खास तौर पर भारत और पाकिस्तान के नागरिक) को बहुत कम समय में निष्कासित कर दिया। मुसेवेनी ने देश की अर्थव्यवस्था में इनके योगदान को स्वीकार करते हुए कहा कि इन लोगों ने होटल और इस्पात के उद्योग के अलावा चीनी उत्पादन में भी उल्लेखनीय निवेश किया है। उन्होंने कहा कि निष्कासन की अवधि के दौरान देश तेजी से आगे बढ़ने से चूक गया, जिसका उन्हें अफसोस है।
गौरतलब है कि युगांडा छोड़ने के लिए मजबूर किए जाने के बाद बड़ी संख्या में एशियाई लोगों के बड़े समूह को संघर्ष करना पड़ा। समृद्ध होने के बावजूद इस समुदाय के लोगों को दुनियाभर में अलग-अलग जगहों पर नई दुनिया बसानी पड़ी। इन लोगों ने युगांडा में चल रहा बिजनेस बंद करना पड़ा, जिसे कई वर्षों तक खून-पसीने की कमाई से खड़ा किया गया था। दशकों बाद हालात बदले हैं और अब सरकार तस्वीर बदलने के प्रयास कर रही है।
राष्ट्रपति मुसेवेनी ने अमीन के कार्यकाल में उनकी नीतियों के कारण हुई परेशानी को दूर करने के लिए युगांडा की वर्तमान सरकार के फैसलों को भी गिनाया। उन्होंने कहा, ‘जब हम सरकार में आए तो हमने युगांडा में रहने वाले एशियाई नागरिकों और गैर-नागरिकों की संपत्तियां लौटाने का फैसला लिया। अमीन ने संपत्तियों को जब्त किया था।’ उन्होंने कहा कि 1980 और 1990 के दशक में देश लौटने के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप के एशियाई लोग एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था के स्तंभ बन गए हैं। वापस लौटे भारतीय लोगों ने 900 फैक्टरियों को दोबारा शुरू कर दिया है। इससे युगांडा की अर्थव्यवस्था में भारत की अहम भूमिका रेखांकित होती है।