फेफड़ों के कैंसर, दुनियाभर में तेजी से बढ़ते कैंसर के मामलों में से एक हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि इस प्रकार के कैंसर का सबसे ज्यादा जोखिम उन लोगों में होता है जो धूम्रपान करते हैं। पर हालिया रिपोर्ट्स काफी चिंता बढ़ाने वाली हैं। इसमें कहा गया है कि नॉन स्मोकर्स यानी जिन लोगों ने कभी धूम्रपान नहीं किया है उनमें भी यह जोखिम तेजी से बढ़ रहा है। इतना ही नहीं 50-60 फीसदी लंग्स कैंसर के मामले नॉन स्मोकर्स में रिपोर्ट किए जा रहे हैं। डॉक्टर्स ने चिंता जताते हुए सभी लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी है, लंग्स कैंसर हर साल लाखों लोगों की मौत का कारण बनता है।
फेफड़ों के कैंसर को आमतौर पर दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है- नॉन स्मॉल सेल कार्सिनोमा (एनएससीएलसी) और स्मॉल सेल कार्सिनोमा (एससीएलसी)। डॉक्टर कहते हैं, एनएससीएलसी का जोखिम अधिक देखा जा रहा है। अगर आप धूम्रपान नहीं भी करते हैं तो भी आपको कैंसर के इस जोखिम से पूरी तरह सुरक्षित नहीं माना जा सकता है। आइए जानते हैं कि कौन से कारण नॉन स्मोकर्स में इसका खतरा बढ़ा रहे हैं?
लंग्स कैंसर के जोखिम
यूएस सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 50% से अधिक फेफड़ों का कैंसर उन लोगों में देखा जा रहा है जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है, क्योंकि एडेनोकार्सिनोमा या कैंसर उन कोशिकाओं में शुरू होता है जो फेफड़ों की छोटी वायु थैलियों को घेरती हैं और बलगम जैसे पदार्थ बनाती हैं। धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर के लगभग 20% मामले अंदरूनी हिस्से की परत में देखे जा रहे हैं। इसके कारणों को समझने के लिए किए गए अध्ययन में पाया गया है कि कुछ स्थितियां इस जोखिम को बढ़ा रही हैं, जिनको लेकर सभी लोगों को अलर्ट रहने की आवश्यकता है।
सेकेंड-हैंड स्मोकिंग सबसे बड़ा खतरा
सेकेंडहैंड स्मोकिंग उन लोगों में फेफड़ों के कैंसर के सबसे बड़े जोखिम कारकों में से एक है, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया। अमेरिकन कैंसर सोसायटी की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि लगभग 7,000 वयस्क सेकेंडहैंड स्मोकिंग के कारण फेफड़ों के कैंसर से मारे जाते हैं। सेकेंडहैंड स्मोकिंग का मतलब तंबाकू उत्पादों को जलाने से निकलने वाले धुएं में सांस लेने से है। मतलब अगर आपके साथी धूम्रपान करते हैं और उससे निकलने वाले धुएं में आप सांस ले रहे हैं तो इसके कारण भी आपमें कैंसर का खतरा हो सकता है।
हानिकारक रसायनों का संपर्क
कई लोगों को अपने काम करने वाली जगहों पर मौजूद कैंसर पैदा करने वाले एजेंटों के कारण भी फेफड़ों के कैंसर का शिकार पाया जा रहा है, भले ही वे धूम्रपान नहीं कर रहे हों। जो लोग ऐसे स्थानों पर काम करते हैं जहां आर्सेनिक, यूरेनियम, एस्बेस्टस और डीजल का धुआं होता है, उनमें फेफड़ों के कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। इस तरह के धुएं में सांस लेने से हानिकारक तत्व फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे भी कैंसर विकसित हो सकता है।
फेफड़ों के कैंसर की फैमिली हिस्ट्री
कई अध्ययनों से पता चला है कि फेफड़ों के कैंसर की फैमिली हिस्ट्री वाले लोगों को भी इस कैंसर का खतरा हो सकता है, भले ही वो धूम्रपान न करते हों। डॉक्टर कहते हैं, यदि आपके परिवार के किसी सदस्य को फेफड़ों का कैंसर रहा हो, तो आपमें भी इसकी आशंका दोगुनी जाती है।
ऐसे लोग जिनके दो या अधिक प्रथम-डिग्री के रिश्तेदार (भाई, बहन, माता-पिता या बच्चे) को फेफड़े का कैंसर हुआ है, उनमें फेफड़े का कैंसर होने की आशंका और भी अधिक होती है। इस तरह के जोखिम वालों को नियमित रूप से डॉक्टर से मिलकर जांच, सलाह लेना आवश्यक हो जाता है।