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1984 का वह सिख नरसंहार कभी नहीं भूलेगा देश: 33 वर्षों से सिख समुदाय माँग रहा है न्याय, क्या न्याय मिलेगा?

31अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगा भड़क गए जिसमें आधिकारिक रूप से 2733 सिखों को निशाना बनाया गया। गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मरने वालों की संख्या 3870 थी। दंगों का सबसे अधिक असर दिल्ली, इंदौर और कानपुर पर हुआ। देशभर में सिखों के घरों और उनकी दुकानों को लगातार हिंसा का निशाना बनाया गया। तीन दिन तक सिखॊं का नरसंहार चलता रहा।

दिल्ली में खासकर मध्यम और उच्च मध्यमवर्गीय सिख इलाकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया। राजधानी के लाजपत नगर, जंगपुरा, डिफेंस कॉलोनी, फ्रेंड्स कॉलोनी, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एनक्लेव, पंजाबी बाग आदि कॉलोनियों में हिंसा का तांडव रचा गया। गुरुद्वारों, दुकानों, घरों को लूट लिया गया और उसके बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया गया। इंदिरा गांधी के मरने के बाद प्रधानमंत्री बने उनके बेटे राजीव गांधी ने हिंसा के जवाब में कहा कि जब कोई मजबूत पेड़ गिरता है तब उसके आसपास की धरती हिलती ही है।

राजीव गाँधी का ये बयान आग में घी की तरह काम कर रहा था लोगोँ को इशारा मिलना काफ़ी था। कुछ लोगोँ ने बाक़ायदा रजिस्टर लेकर दिल्ली के घरों में जा जाकर उनकी पहचान करनी शुरू कर दी ताकि कोई भी सिख परिवार उनके इस कोप से बच न सके। उस वक्त सिखों के परिवार पर किये गये जुल्मों से रूह भी काँप गयी होगी। गर्भवती महिलाओँ को पेट के बल लिटाकर उसके ऊपर दंगगाई कूदने लगे। जवान लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया और पुरुषों को टायर का हार डाल कर जला दिया गया।

इतना भीभत्स कांड होने के बावजूद आज 33 वर्षो से सिख समुदाय को इंसाफ नहीं मिल पाया है। किसी भी आरोपी को सजा नहीं दी गयी । इसके लिये हर वो सरकार जिम्मेदार है जो केंद्र में शासन कर रही है या कर चुकी है।

सिख धर्म का इतिहास हमेशा कुर्बानी के लिये जाना जाता है चाहे हमारे गुरु और उनका परिवार हो चाहे देश की आजादी के लिये किये गये सिखों द्वारा संघर्ष हो। हमें हमारे गुरुओं ने ऐसी शिक्षा दी है कि आज भी हम सिख औरों से अलग और बिंदास जिँदगी जीते आ रहे है ।