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‘हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आज़ाद हुआ, लेकिन खरपतवार, कीटनाशक और हाइब्रिड बीजों के इस्तेमाल की गुलामी में कैद हो गए’

लखनऊ। अपनी उपजाऊ जमीनों से सोने की चिड़ियाँ कहलाने वाला भारत देश 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से तो आज़ाद हुआ, लेकिन खरपतवार, कीटनाशक और हाइब्रिड बीजों के इस्तेमाल की गुलामी में कैद हो गया, जिसने भारत जैसे अखंड राष्ट्र को फिर से गुलामी में जकड़ लिया।

इन बीजों और खरपतवार के इस्तेमाल कर देश का किसान धीरे धीरे अपनी उपजाऊ ज़मीनों को खोकर बंजर बनाता चला गया, हालांकि उससे इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि इन बीजों और खरपतवार के इस्तेमाल से खेती में तरक्की को नहीं बल्कि अपनी पैदावार को खत्म करता जा रहा है। ये बातें लखनऊ विश्वविद्यालय में लोक प्रशासन विभाग के सभागार में शुक्रवार को प्रेसवार्ता के दौरान विषय विचारक व अभियान समन्वयक गोपाल उपाध्याय ने कही।

विचारों की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि मिश्रित खेती और शून्य लागत गौ आधारित प्राकृतिक कृषि से भारत अपनी उपजाऊ ज़मीनों को फिर से पहले जैसा बिना कीटनाशक और खरपतवार का इस्तेमाल किए बना सकता है, जिससे लहलहाते हुए खेत और किसानों के चेहरे पर मुस्कान फिर से लौट सकेगी। इसके लिए एक जीरो लागत प्राकृतिक कृषि शिविर कार्यक्रम का आयोजन पदमश्री शुभाष पालेकर द्वारा दिसंबर में किया जाएगा, जिसमें खेती के लिए ज़मीनों में आवश्यक पोषक तत्व और खाद को खुद तैयार करने का प्रशिक्षण देकर प्राकृतिक खेती करने गुर सिखाए जाएंगे, ताकि किसान अपनी बिना किसी लागत के खेती कर सके और खुशहाल जी सके।

आज एक किसान ही अपने बेटे को किसान बनाने से कतरा रहे है, पहले जिसके पास खेतिहर भूमि होती थी उसे सम्पन्न मन जाता था, लेकिन आज़ादी के बाद से अवधारणा बदलती चली गई और हम ज्यादा पैदावार के चक्कर में अपनी उपजाऊ ज़मीनों को खोते चले गए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से खेती में नाइट्रेट के इस्तेमाल को खेती को बढ़ावा देने के लिए नहीं बल्कि उससे खत्म करने के लिए दिया गया।

उन्होंने कहा कि किसी भी देश की सबसे बड़ी आर्थिक स्थिति उस देश के नागरिकों का भरण पोषण होता है। द्वितीय विश्व युद्ध जीतने के लिए विदेशियों ने जिन हथियारों की फैक्टरियों को डाला था, युद्ध समाप्त होने के बाद उससे ही खेती आधारित बीजों और कीटनाशकों को बनाना और उन्हें भारत मे बेचना शुरू कर दिया, जिससे आज पूरे भारत देश में खेतिहर ज़मीनों का नाश हो रहा है। किसान गौ आधारित प्राकृतिक कृषि कर अपनी ज़मीनों को उपजाऊ बने रहने के साथ साथ उसमें मिश्रित खेती कर फिर से सुखी बन सकता है।

छह दिवसीय शून्य लागत गौ आधारित प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण शिविर का आयोजन 20 से 25 दिसंबर को डॉ. भीमराव अंबेडकर यूनीवर्सिटी में होगा। इसमें 1500 से ज्यादा गोपालकों, प्रगतिशील कृषकों, कृषि विज्ञानकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने का निर्णय लिया है।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री भारत सरकार राधा मोहन सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप साही के साथ कई गणमान्य जन उपस्थित होंगे। कार्यक्रम के दौरान लोकभारती से संगठन मंत्री बृजेन्द्र पाल सिंह, प्राकृतिक कृषि अभियान के समन्वयक गोपाल उपाध्याय, कार्यक्रम समन्वयक महीप कुमार मिश्र, उपध्यक्ष अजय प्रकाश, संपर्क प्रमुख श्रीकृष्ण चौधरी, प्रचार प्रमुख शेखर त्रिपाठी, डॉ. मनोज पांडेय, डॉ. नवीन सक्सेना आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।