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गुजरात में मोदी और अमित शाह के लिए मुसीबत बन रहे ये तीन युवा नेता

अहमदाबाद। पीएम मोदी के गृहराज्य गुजरात में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले है। चुनाव से पहले जिस तरह से बीजेपी ने राज्य में प्रचार के लिए दूसरे राज्यों के नेताओं को इंपोर्ट करना शुरू किया है उससे साफ पता चलता है कि बीजेपी इस बार के चुनाव में बैकफुट पर है। जिस राज्य के डेवलेपमेंट मॉडल को दिखाकर बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल की आज उसी गुजरात में बीजेपी को हार का डर सताने लगा है। इस बार के चुनाव में बीजेपी के चुनौती सिर्फ विरोधी कांग्रेस से ही नहीं बल्कि गुजरात के ही तीन युवाओं से भी मिलने वाली है। बीते दो सालों में जिस तरह तीन युवाओं हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर ने पाटीदार, ओबीसी और दलित समुदायों को प्रभावित किया है। उससे बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी है।

जिग्नेश मेवाणी

35 साल के जिग्नेश मेवाणी को नए जमाने का ‘अग्रेसिव’ दलित नेता कहा जा रहा है। जिग्नेश के पास ना तो और नेताओं की तरह घूमने के लिए बड़ी गाड़ियों का काफिला है और ना ही भीड़ जुटाने के लिए नोट की गड्डियां। लेकिन दलितों की बात करने वाले जिगनेश के पीछे जनता खुद ही चली आती है। जिग्नेश उस वक्त चर्चा में आए जब गुजरात में दिलितों की हुई पिटाई के बाद उन्होंने ‘गाय की दुम आप रखो, हमें हमारी ज़मीन दो’ के नारे के साथ गुजरात में में दलितों की अस्मिता मार्च का आयोजन किया था।

अल्पेश ठाकोर

ओबीसी व  एससी एसटी वर्ग को एकजुट करते हुए अल्पेश ठाकोर ने आरक्षण बचाने के नाम पर संघर्ष छेड़ दिया था। सामाजिक आंदोलन को आगे बढाते हुए अल्पेश ने नशाबंदी, शराबबंदी अमल में सख्ती बरतने, बाबा साहब अंबेडकर की विशाल प्रतिमा के निर्माण, बेरोजगार युवाओं को नौकरी के साथ निजी उद्योगों में आरक्षण, किसानों की कर्जमाफ, गौचर भूमि संरक्षण, श्रीराम मंदिर व श्रीराम यूनिवर्सिटी निर्माण, ठाकोर कोळी विकास निगम सहीत दस मांगे सरकार के समक्ष रखी है।

हार्दिक पटेल

गुजरात में पाटीदार समाज को आरक्षण दिलने के लिए हार्दिक पटेल ने जो आंदोलन शुरू किया था उसके बारे में तो पूरे देश को पता है। आरक्षण के लिए उनकी मांग अभी भी जारी है। इस बार के चुनाव से पहले जिस तरह से हार्दिक पटेल राहुल गांधी पर थोड़ा सॉफ्ट हमला बोल रहे हैं उससे बीजेपी की मुश्किलें थोड़ी और बढ़ गई है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार ये तीनों युवा गुजरात विधानसभा चुनाव को प्रभावित करेंगे। गुजरात की आबादी में ओबीसी का हिस्सा 51 फीसदी है। ऐसे में बड़े पैमाने पर बीजेपी को मुकाबला दिया जा सकता है। इन तीन नेताओं का प्रभाव राज्य की 100 से अधिक सीटों पर हो सकता है।