मराठी सिनेमा के दिग्गज निर्देशक रवि जाधव पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक ‘मैं अटल हूं’ को लेकर इन दिनों काफी उत्साहित हैं। रवि जाधव ने मराठी सिनेमा में बतौर निर्देशक अपने करियर की शुरुआत फिल्म ‘नटरंग’ से की, और पहली ही फिल्म को नेशनल अवार्ड मिला। ‘नटरंग’ के बाद रवि जाधव ने ‘बालगंधर्व’, ‘बालक पालक’ और ‘टाइम पास’ जैसी लगातार हिट फिल्में करके मराठी सिनेमा के नंबर वन निर्देशक बन गए और हिंदी सिनेमा में फिल्म ‘बैंजो’ से शुरुआत की। हाल ही में रवि जाधव ने फिल्म ‘मैं अटल हूं’ को लेकर अमर उजाला से खास बातचीत की।
फिल्म ‘मैं अटल हूं’ के लिए जब पहली बार फिल्म के निर्माता विनोद भानुशाली ने आप से संपर्क किया तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी ?
मैंने उन्हीं दिनों अटलजी की कविताएं पढ़नी शुरू की थी। मेरे दिमाग में यह बात काफी समय से चल रही थी, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि कभी उन पर फिल्म बनाऊंगा। मैं खुद एक कलाकार हूं और मुझे लगा कि एक कलाकार की जिंदगी दिखाने में काफी मजा आएगा। उसके बाद मुझे पता चला कि पंकज त्रिपाठी अटल जी की भूमिका निभा रहे हैं, मेरे लिए तो यह बहुत ही अच्छी बात थी। लॉकडाउन के दौरान पंकज त्रिपाठी का वीडियो देखता था। उनकी सादगी और उनके अभिनय से काफी प्रभावित रहा हूं।
इस फिल्म से जुड़ने के बाद आपकी किस तरह से तैयारी शुरू हुई?
फिल्म की कहानी ‘द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटिशियन एंड पैराडॉक्स’ नामक किताब पर आधारित है। अटल जी का व्यक्तित्व बहुत बड़ा है। उन पर फिल्म बनाना बहुत मुश्किल है। उनके साथ जिन लोगों ने वक्त बिताया है, अभी वे लोग हैं। करोड़ों लोग हैं जो आज भी अटल जी की बहुत इज्जत करते हैं। जिस जिंदगी को उन्होंने जिया है। उसमें काफी उतार चढ़ाव थे। उनका जीवन एक योद्धा की तरह रहा है। वह ऐसे राजनेता नहीं रहे हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि ऐसी कौन सी घटनाएं हैं, जिसे दो घंटे की फिल्म में बताई जा सके।
किसी राजनीतिक नेता से भी मिलना हुआ?
मुझे छह महीने का समय फिल्म के लिए शोध में लगा। इसके लिए मैंने किसी भी राजनीतिक दल से बात नहीं की। मेरे लिए यह जरूरी था कि ऐसी कौन सी घटनाएं बताऊं जिससे आज के युवा वह प्रेरित हो। आज की राजनीति से अटल जी कैसे अलग थे? किसी भी पार्टी का नेता हो, उनके साथ बहुत अच्छे संबंध थे। मेरा मानना है कि कोई भी प्रोजेक्ट कितना भी कठिन हो उसको साधारण तरीके से कैसे बनाया जाना चाहिए। जैसे मैंने गौरी सावंत के ऊपर वेब सीरीज ‘ताली’ बनाई। मैं मन में यही सोच रहा था कि अगर गौरी सावंत सीरीज दिखेंगी तो उनको कैसा लगेगा? इस फिल्म को बनाते वक्त मेरे मन में यही विचार था जो लोग अटल जी के बहुत करीब रहे हैं, उनको फिल्म कैसी लगेगी?
आपने विज्ञापन कंपनी की नौकरी छोड़कर फिल्म मेकिंग शुरू की, समय कठिन तो रहा होगा?
मेरी पत्नी का बहुत सपोर्ट रहा, उन्होंने कहा कि तुम जो करना चाहते हो करो। अगर फिल्म नहीं चली तो वापस एडवरटाइजिंग में काम कर लेना, लेकिन कोशिश करो। मेरे लिए यह बहुत बड़ा मोरल सपोर्ट था। साल 2009 में ‘नटरंग’ शुरू की और साल 2010 में रिलीज हुई, जिसे नेशनल अवार्ड मिला। मराठी में वह फिल्म बहुत चली। इसके बाद मैंने ‘बालगंधर्व’ बनाई। इस फिल्म को तीन नेशनल अवार्ड मिले। फिर ‘बालक पालक’, ‘टाइमपास’ की, सभी फिल्में हिट रही। इसके बाद मैंने सोच लिया कि वापस एडवरटाइजिंग में नहीं जाना है, अब फिल्में ही बनानी है।
जब पंकज त्रिपाठी से पहली बार आप फिल्म ‘मैं अटल हूं’ के लिए मिले, तो कैसे अनुभव रहे?
मुझे ऐसा लगा जैसे घर के किसी सदस्य से मिल रहा हूं जिससे मैं कुछ भी बोल सकता हूं, अपने मन की बात कर सकता हूं। अगर मेरे मन में कोई शंका हो तो बिना संकोच के उसने पूछ सकता हूं। उनके अंदर ऐसी खूबी है कि आपको अपना बना लेते हैं। कोई पर्दा, कोई गिला शिकवा नहीं था। एक दिन में ही हम दोस्त बन गए। उन्होंने इस फिल्म के लिए बहुत ही मेहनत से काम किया है। जब आप फिल्म देखेंगे तो इसमें नजर आएगा।