उग्रवादी संगठन उल्फा के नेता परेश बरुआ ने संगठन के वार्ता समर्थक धड़े के साथ हुए एक त्रिपक्षीय शांति समझौते को को ‘शर्मनाक’ करार दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक समाधान तब तक संभव नहीं है, जब तक क्रांतिकारी अपने लक्ष्यों और आदर्शों को को छोड़ नहीं देते हैं।
यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वार्ता विरोधी धड़े के नेता बरुआ ने एक असमिया टेलीविजन चैनल को टेलीफोन पर इंटरव्यू दिया। इस दौरान उन्होंने कहा, हम समझौते से हैरान, चिंतित या नाराज नहीं हैं, बल्कि शर्मिंदा हैं। हम जानते हैं कि जब क्रांतिकारी अपने लक्ष्य, आदर्श और विचारधारा छोड़ देते हैं तो परिणाम क्या होता है। राजनीतिक समाधान संभव नहीं है।
उनसे जब मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की उनके गुट के साथ संभावित बातचीत के बारे में पूछा गया तो बागी नेता ने कहा, हां, उन्होंने मुझसे बात की थी। लेकिन हम इस पर बातचीत के लिए नहीं बैठेंगे। हमने राजनीतिक समाधान की मांग की है और हम इस लक्ष्य से पीछे नहीं हटेंगे और राज्य के लोगों से विश्वासघात नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा, ‘अगर राजनीतिक मांगें पूरी नहीं की जाती हैं और केवल पैकेज दिया जाता है, तो यह स्वीकार्य नहीं है। हम शुरू से कह रहे हैं कि वे (उल्फा का वार्ता समर्धक धड़ा) तथाकथित व्यवस्था के गलत रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।’ बुरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा (आई) तब तक बातचीत की मेज पर आने के लिए तैयार नहीं था, जब तक कि ‘असम की संप्रभुता’ के मुद्दे पर चर्चा नहीं की जाती। सुरक्षा बलों ने अभियान तेज कर दिया था।
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने इन मुद्दों पर अपने पूर्व साथियों के साथ चर्चा की थी, उल्फा (आई) नेता ने कहा कि संगठन के महासचिव अनूप चेतिया ने उनसे बात की थी और उन्होंने चेतिया को राजनीतिक समझौते के बारे में समझाने की कोशिश की। लेकिन, चेतिया ने उन्हें बताया कि वार्ताकारों ने इस मांग को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘क्या वे यह जाने बिना बातचीत के लिए गए कि संविधान में क्या है? बातचीत संविधान के दायरे से बाहर रहकर होनी चाहिए।’ बरुआ ने दावा किया कि चेतिया ने उनसे कहा था कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं है। बरुआ ने कहा, ‘अगर कोई अन्य विकल्प नहीं था, तो उन्हें लोगों को बताना चाहिए कि उन्हें धोखा दिया गया है।’ बरुआ ने दावा किया कि चेतिया ने कहा कि वह वार्ता प्रक्रिया की शुरुआत से वहां नहीं है और अब सुधार करना संभव नहीं है।
उल्फा महासचिव 1997 से 18 साल की सजा काटने के बाद 2015 में बांग्लादेश की जेल से रिहा होने के बाद वार्ता प्रक्रिया में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा, ‘हम उनके (वार्ता समर्थक गुट) साथ सहयोग नहीं कर सकते क्योंकि हमने अपने आदर्शों और विचारधारा को नहीं छोड़ा है। हम वार्ता की मेज पर तब तक नहीं बैठेंगे जब तक कि नगा फ्रेमवर्क समझौते की तर्ज पर चर्चा नहीं होती है, जिसमें संसाधनों पर नियंत्रण, एक अलग संविधान और झंडा शामिल है।’