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92 साल के बाद 2017 में खत्म हो जाएगा रेल बजट का सफर!

prabhu13नई दिल्ली। अगले वित्त वर्ष से रेलवे के लिए अलग बजट नहीं बनेगा। इस तरह साल 1924 से चला आ रहा यह सिलसिला वहीं खत्म हो जाएगा क्योंकि वित्त मंत्रालय रेल बजट को आम बजट में ही मिला देने के प्रस्ताव पर सहमत हो गया है। सरकारी सूत्रों ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि वित्त मंत्रालय ने पांच सदस्यों की एक समिति बनाई है जो दोनों बजटों के विलय के तौर-तरीकों पर काम करेगी। इस विलय के बाद हर साल रेल बजट पर होने वाला रेल मंत्री का भाषण अब सुनने को नहीं मिलेगा।

सरकार की यह पहल इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में और खासकर 1996 के बाद आई गठबंधन सरकारों में राजनीति पर दबदबा रखनेवालों ने रेल बजट का इस्तेमाल अपनी छवि बनाने में किया था। रेल मंत्रालय अक्सर क्षेत्रीय दिग्गजों के अधीन रहा, इसलिए रेल बजट में रेल मंत्री की राजनीतिक प्राथमिकताओं को ही ज्यादा तवज्जो दी जाती रही। इस दौरान विभागीय नौकरशाहों की ओर से भी कड़ा प्रतिरोध सामने आया।

लेकिन, चमक-दमक का त्याग करने की रेल मंत्री सुरेश प्रभु की तत्परता से रेल बजट की परंपरा पर अब विराम लगने जा रहा है क्योंकि लोकसभा में पूर्ण बहुमत की वजह से बीजेपी रेल मंत्रालय का जिम्मा अपने सहयोगी दल को देने की बजाय इसे अपने पास रखने में सक्षम हो पाई है। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही रेल बजट की परंपरा पर विराम लगाने पर चर्चा तब शुरू हुई जब नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय और किशोर देसाई ने इसे खत्म करने की सलाह दी।
मंगलवार को प्रभु ने राज्यसभा को बताया था कि उन्होंने रेलवे और देश की अर्थव्यवस्था के हित में वित्त मंत्री से रेल बजट का आम बजट में विलय करने का आग्रह किया है। हालांकि, उन्होंने इसकी कोई समय-सीमा नहीं बताई थी। अगर रेल बजट का आम बजट में विलय हो जाता है तो रेलवे भी उन दूसरे विभागों की तरह हो जाएगा जिन्हें बजट अलॉट किया जाता है, लेकिन इनके खर्च एवं आमदनी पर वित्त मंत्रालय की नजर होती है।

पूरा फंड अलॉट होने पर रेलवे उसे विभिन्न मकसदों के लिए इस्तेमाल करेगा। सूत्र बताते हैं कि इसका तौर-तरीका पोस्टल डिपार्टमेंट की तरह होगा। जहां तक बात रेवेन्यू की है तो रेलवे केंद्र सरकार का सबसे बड़ा कमाई करनेवाला विभाग साबित होगा। मौजूदा वित्तीय वर्ष में भी इसकी सकल यातायात आय 1.8 लाख करोड़ रुपये रही है।

22 जून को टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी थी कि समिति दोनों बजटों का विलय चाहती है। देबरॉय ने रेलवे को लेकर अपनी सलाह दी तो प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने उन्हें रेल बजट और आम बजट के एकीकरण की योजना की रूप-रेखा तैयार करने का जिम्मा सौंप दिया। सरकार देबरॉय की रिपोर्ट पर काम कर रही है जिसमें कहा गया है कि संविधान में अलग रेल बजट की बात नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि रेल बजट के विलय से रेलवे के राजनीतिकरण पर रोक लगेगी। तब सरकार के लिए इस पर कमर्शल डिसिजन्स लेने का रास्ता तैयार हो जाएगा।

साल 1924 तक ब्रिटिश सरकार संयुक्त बजट पेश किया करती थी, लेकिन अर्थशास्त्री विलियम एकवर्थ की अध्यक्षता में एक समिति ने पुनर्गठन के लिए अलग-अलग बजट का प्रावधान करने का सुझाव दिया तो चीजें बदल गईं। अब मामला बिल्कुल उलटा हो रहा है क्योंकि मोदी सरकार रेलवे के काम-काज के तौर-तरीक बदलने पर आमदा दिखती है। सरकार की इच्छा का प्रदर्शन रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन की प्रक्रियाओं में भी होता है।

अतीत में भी वित्त मंत्रालय ने रेल बजट को आम बजट में मिलाने की संभावनाओं पर चर्चा की थी, लेकिन खुद रेलवे के विरोध की वजह से यह कभी आगे नहीं बढ़ पाई। प्रभु के नेतृत्व में रेलवे का नजरिया बदला है जिन्हें लगता है कि आम बजट में विलय से रेलवे को अपनी वित्तीय जिम्मेदारियां पूरा करने में मदद मिलेगी। दरअसल, सातवां वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और बोनस के पेमेंट की सीमा हटने के मद्देनजर इसकी जरूरत और भी बढ़ गई है।