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75 की उम्र में भी बीजेपी के सीएम उम्मीदवार क्यों हैं येदुरप्पा

जन्मदिन पर बीएस यदुरप्पा के लिए इससे बेहतर उपहार और क्या होता! मंगलवार के दिन उन्होंने अपनी उम्र के 75 साल पूरे किए और इस मौके पर खुद प्रधानमंत्री उनके साथ नजर आए. साथ ही, उन्हें बीजेपी के नेतृत्व से इस बात का आश्वासन भी मिला कि इस मई में बीजेपी सत्ता में आई तो सूबे में पूरे पांच सालों के लिए वे ही मुख्यमंत्री होंगे.

उम्र के एतबार से यदुरप्पा के लिए यह आश्वासन महत्वपूर्ण है क्योंकि बीजेपी में 75 साल की उम्र को मंत्रियों के लिए एक मानक के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, सूबे में भी और केंद्र में भी. मंत्री पद के लिए पचहत्तर साल की उम्र को एक तरह से रिटायरमेंट की उम्र मान लिया गया है. इस आयु-सीमा को पार करने पर नजमा हेपतुल्लाह और कलराज मिश्र ने अपना पद खुद ही छोड़ दिया. पार्टी के सबसे वरिष्ठ सदस्यों में शुमार लालकृष्ण आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी से कहा गया कि वे मार्गदर्शक मंडल की सदस्यता ले लें. गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने इस उम्र के मुकाम पर पहुंचने के तीन माह पहले पद से इस्तीफा दिया और वजह भी बढ़ती उम्र की ही गिनाई.

India's BJP leader Advani attends a party meeting in Ahmedabad

सवाल उठता है कि आयु-सीमा में दी गई छूट का यह बरताव सिर्फ बीएस यद्दुरप्पा के लिए है या फिर बीजेपी ने उनके मार्फत आगे के वक्तों के लिए एक नजीर पेश की है? चूंकि बीजेपी ने जीत हासिल होने पर पूरे पांच साल के लिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है तो क्या यह माना जाय कि सूबे में बीजेपी के पास पूर्व मुख्यमंत्री के अलावा और कोई विकल्प नहीं है ? या फिर बीएस यद्दुरप्पा का मनुहार करते हुई यह जताने की कोशिश की जा रही है कि सूबे में जीत का मुकाम बिल्कुल पास आ गया है और इस मुकाम पर पहुंचकर पार्टी कोई फेर-बदल नहीं करना चाहती?

एक स्तर पर यह भी जान पड़ता है कि पार्टी यद्दुरप्पा को हुए नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर रही है. लालकृष्ण आडवाणी के प्रभाव वाली बीजेपी ने 2011 में यद्दुरप्पा से एकदम ही किनारा कर लिया था, उन्हें मुख्यमंत्री पद से मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा था. यद्दुरप्पा ने जब पार्टी छोड़कर कर्नाटक जन पक्ष नाम से अपनी नई पार्टी बनाने का एलान किया तो कहा था कि उनके इस्तीफे के वक्त बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी ने आश्वासन दिया था उन्हें जल्दी ही फिर से पद सौंपा जाएगा.

उस वक्त यद्दुरप्पा ने कहा था कि `वो वादा झूठा निकला. आडवाणी की नीयत सांसद अनंत कुमार को मुख्यमंत्री के पद पर बैठाने की थी. मेरी अपनी ही पार्टी के नेताओं ने मेरे खिलाफ झूठे आरोप लगाए’.

यदुरप्पा के साथ अगर-मगर

हालांकि यद्दुरप्पा को कर्नाटक में पार्टी ने अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है लेकिन सूबे में उन्हें लेकर ‘अगर-मगर’ की अटकल वाली बहुत सारी बातें कही जा रही हैं. सबसे तेज अटकल उनकी बढ़ती उम्र के हवाले से है. कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय सबसे बड़ा है, इस समुदाय की तादाद सूबे की आबादी में तकरीबन 17 प्रतिशत है और इस समुदाय के लोगों को आशंका थी कि यद्दुरप्पा के नाम पर वोट हासिल करने के बाद बीजेपी उन्हें अंगूठा दिखा देगी. यद्दुरप्पा को लिंगायत समुदाय का सबसे बड़ा नेता माना जाता है और पार्टी में उनके रहते बीजेपी को लिंगायत समुदाय का समर्थन मिलना तय है. सार्वजनिक तौर पर यद्दुरप्पा की तरफदारी करने की कोशिश लिंगायत समुदाय के मन में चल रही आशंका को कम करने की मंशा से की गई.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत कुमार का कहना है कि रणनीतिक रुप से देखें तो“ बीजेपी के पास यह कहने का विकल्प नहीं था कि यद्दुरप्पा एक या दो साल के लिए मुख्यमंत्री रहेंगे. बहुत संभव है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद यद्दुरप्पा से कह दिया जाय कि अब कमान अपनी पसंद के किसी नेता को सौंप दीजिए. लेकिन अगर बीजेपी को अभी जीत मिलती है तो किसी और को मुख्यमंत्री बनाना बहुत बड़ा धोखा कहलाएगा.’

एक मकसद सूबे में पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं को संदेश देने का भी हो सकता है. कर्नाटक में शीर्ष पद पर दावेदारी जताने वाले नेताओं की तादाद बीजेपी में ज्यादा है. गोलबंदी करने में माहिर केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े के खेमे को कुछ महीनों से बढ़त मिलती दिख रही थी और ऐसे में यद्दुरप्पा का खेमा कुछ आशंकित था.

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बीएस यद्दुरप्पा ने खुद को सूबे में बीजेपी का शीर्ष नेता साबित करने की कोशिश में साफ कर दिया कि वे हेगड़े के सांप्रदायिक तेवर वाले बयानों के पक्ष में नहीं हैं. यद्दुरप्पा के ऐसा कहने के बाद यह तय हो गया कि हेगड़े की दाल आगे नहीं गलने वाली. हेगड़े अपनी गलती दोहराने के आदी रहे हैं. उन्होंने बार-बार भड़काऊ बयान दिया है. एक दफे उन्होंने कहा था कि जबतक हम इस्लाम को मिटा नहीं देते आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता. लेकिन उनके इन भड़काऊ बयानों का एक पक्ष यह भी है कि कर्नाटक के तटवर्ती इलाके में इसकी वजह से उन्हें तवज्जो मिलती है क्योंकि यह इलाका सांप्रदायिक रुप से संवेदनशील है.

बेशक कर्नाटक में बीजेपी के लिए एक समस्या है कि वहां पार्टी के बहुत से नेता हैं लेकिन यह बात भी सच है कि पूरे सूबे में जनाधार वाले नेता बीएस यद्दुरप्पा ही हैं. ऐसे में अगर 75 साल की उम्र वाला नियम बीजेपी लागू करती तो यह फैसला पार्टी के पक्ष में नहीं जाता .

राजनीतिक विश्लेषक सुगत राजू बताते हैं कि `अभी के हालात में अगर बीजेपी जीतती है तो इसका श्रेय मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह के चुनावी-प्रबंधन को मिलेगा. लेकिन बीजेपी की हार होती है तो इसका दोष यद्दुरप्पा को लगेगा.’

बीजेपी के आलोचकों ने ध्यान दिलाया है कि 2018 के यद्दुरप्पा और 2008 के यद्दुरप्पा में फर्क है. परिवर्तन-यात्रा के दौरान वे योगी आदित्यनाथ के साथ थे और उस घड़ी यह स्पष्ट हो गया था कि सूबे में बीजेपी का असली नेता कौन है लेकिन परिवर्तन यात्रा के वक्त यद्दुरप्पा के हाव-भाव से ऐसा नहीं लग रहा था कि कर्नाटक का यह कद्दावर नेता स्थिति से बहुत खुश है. इसके बाद यद्दुरप्पा के कुछ ट्वीटस् सामने आए. इनमें उन्होंने आरोप मढ़ा कि राहुल गांधी ने कोप्पल के मंदिर में जाने से पहले ‘चिकन’ खाया था. ऐसी बातें यद्दुरप्पा सरीखी हैसियत वाले नेता को शोभा नहीं देतीं. अच्छा होता कि ऐसी बातें बीजेपी का कोई कनिष्ठ नेता कहता.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत कुमार का कहना है कि पहले की तुलना में यद्दुरप्पा अब कहीं ज्यादा मजबूत हैं. साल 2008 में यद्दुरप्पा के सामने एक ही सहारा था, वे एचडी कुमारस्वामी से मिले धोखे की बात कहकर वोट मांग रहे थे. लेकिन इस बार वे लोगों के बीच लिंगायत समुदाय के एकमात्र नेता के रुप में जा रहे हैं. दूसरी बात ए कि दस साल पहले बीजेपी का आला कमान मजबूत नहीं था लेकिन आज मोदी और शाह दोनों उनकी तरफदारी कर रहे हैं कि इन दोनों के लिए भी कर्नाटक में बहुत कुछ दांव पर लगा है. ”

इस हफ्ते दावणगेरे की सभा में दिखा कि बीजेपी यद्दुरप्पा को आगे बढ़ाने का दांव खेल रही है और इसके जरिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव तथा कर्नाटक के विधान सभाई चुनावों के बीच एक तालमेल बैठाया जा रहा है. साल 2018 में बीएस यद्दुरप्पा और 2019 में नरेन्द्र मोदी का चुनावी नारा गूंज रहा है, लोगों से नए कर्नाटक और नए भारत के नाम पर वोट डालने के लिए अपील की जा रही है.