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7वां वेतन आयोग : कुछ तो मिलेगी राहत, आखिरकार एक समिति ने सौंप दी अपनी रिपोर्ट

नई दिल्ली। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों लागू करने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को नौ महीने बीतने को आए हैं. इस फैसले के बाद केंद्रीय कर्मचारियों की वेतन आयोग की कुछ विसंगतियों और सिफारिशों पर आपत्ति के बाद केंद्र सरकार ने तीन समितियों का गठन किया था जिन्हें चार महीनों में अपनी रिपोर्ट देनी थी. लेकिन एक भी समिति ने किसी भी एक विवादित मुद्दे पर अभी तक अपनी अंतिम रिपोर्ट तैयार नहीं की है. असमंजस की स्थिति का आलम यह है कि इस मुद्दे पर कई सांसद संसद में भी प्रश्न पूछ चुके हैं और सरकार को कई बार दोनों सदनों में जवाब देना पड़ा है. इसके साथ ही सरकार की ओर जवाब को रिपीट तक करना पड़ा है.

हाल में ही में कर्मचारियों की ओर से एनसीएम स्टाफ साइड की ओर से कर्मचारी नेता शिवगोपाल मिश्र ने कैबिनेट सचिव से मुलाकात की. 28 मार्च को हुई इस मुलाकात के बाद मिश्र ने बताया कि कैबिनेट सचिव के साथ बैठक में उन्होंने साफ कर दिया है कि इन मामलों में देरी से कर्मचारियों में काफी रोष व्याप्त है. मिश्र ने बताया कि कैबिनेट सेक्रेटरी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह खुद मामले को देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि भले ही अलाउंस समिति में कुछ देरी हो रही है, लेकिन पेंशन से जुड़ी समिति ने अपनी रिपोर्ट कैबिनेट को सौंप दी है. मिश्र के अनुसार कैबिनेट सचिव ने उन्हें बताया है कि एनपीएस समिति अपने काम में लग गई है. बाकी मुद्दों को भी हम जल्द ही सुलझा लेंगे.

वहीं, मिश्र ने यह भी बताया कि दिल्ली के एमसीडी चुनाव के चलते संभव है कि कुछ और देरी हो जाए, लेकिन उन्होंने आश्वासन दिया कि जैसे ही अलाउंस की समिति उन्हें अपनी रिपोर्ट सौंपेगी वह जल्द से जल्द इसे कैबिनेट की बैठक में भेज देंगे. उन्होंने यहां तक कहा कि अगर जरूरत पड़ेगी तो सरकार चुनाव आयोग से जरूरी सहमति भी लेने का प्रयास करेगी.

बता दें कि सातवें वेतन आयोग (7th Pay Commission) द्वारा केन्द्रीय कर्मचारियों को दिए जाने वाले कई भत्तों को लेकर असमंजस की स्थिति है. नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में सातवें वेतन आयोग (Seventh Pay Commission) की सिफारिशों को मंजूरी दी थी और 1 जनवरी 2016 से 7वें वेतन आयोग की रिपोर्ट को लागू किया था. लेकिन, भत्तों के साथ कई मुद्दों पर असहमति होने की वजह से इन सिफारिशें पूरी तरह से लागू नहीं हो पाईं.

जानकारी के लिए बता दें कि सातवां वेतन आयोग से पहले केंद्रीय कर्मचारी 196 किस्म के अलाउंसेस के हकदार थे. लेकिन सातवें वेतन आयोग ने कई अलाउंसेस को समाप्त कर दिया या फिर उन्हें मिला दिया जिसके बाद केवल 55 अलाउंस बाकी रह गए. तमाम कर्मचारियों को कई अलाउंस समाप्त होने का मलाल है. क्योंकि कई अलाउंस अभी तक लागू नहीं हुए और कर्मचारियों को उसका सीधा लाभ नहीं मिला है तो कर्मचारियों को लग रहा है कि वेतन आयोग की रिपोर्ट अभी लागू नहीं हुई

अब तक 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर कर्मचारियों की नाराजगी के बाद उठे सवालों के समाधान के लिए सरकार की ओर से तीन समितियों के गठन का ऐलान किया गया था. सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में अलाउंस को लेकर हुए विवाद से जुड़ी एक समिति, दूसरी समिति पेंशन को लेकर और तीसरी समिति वेतनमान में कथित विसंगतियों को लेकर बनाई गई थी.

सबसे अहम समिति विसंगतियों को लेकर बनाई गई है. इस एनोमली समिति का नाम दिया गया है. इसी समिति के पास न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा भी है. चतुर्थ श्रेणियों के कर्मचारियों के न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा भी इस तीसरी समिति का पास है. यही समिति न्यूनतम वेतनमान को बढ़ाने की मांग करने वाले कर्मचारी संगठनों से बात कर रही है. वित्त सचिव की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया है. समिति में छह मंत्रालयों के सचिव शामिल हैं.

समिति के साथ बैठक में कर्मचारी नेताओं ने न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा उठाया है. साथ ही उन्होंने बताया कि संगठन ने मांग की है कि एचआरए को पुराने फॉर्मूले के आधार पर तय किया जाए. संगठन ने सचिवों की समिति से कहा है कि ट्रांसपोर्ट अलाउंस को महंगाई के हिसाब से रेश्नलाइज किया जाये. संगठन ने सरकार से यह मांग की है कि बच्चों की शिक्षा के लिए दिया जाने वाले अलाउंट को कम से कम 3000 रुपये रखा जाए. संगठन ने मेडिकल अलाउंस की रकम भी 2000 रुपये करने की मांग की है. संगठन ने सरकार से यह भी कहा है कि कई अलाउंस जो सातवें वेतन आयोग ने समाप्त किए हैं उनपर पुनर्विचार किया जाए.