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फिरोजाबाद: 18 नवंबर 1981 को हुई 24 दलितों की सामूहिक हत्या में कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, बोली-दोषियों को गर्दन में फांसी लगाकर मृ

मैनपुरी फिरोजाबाद जिले की तहसील जसराना के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को हुई 24 दलितों की सामूहिक हत्या में मंगलवार को कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। इसके साथ ही दो दोषियों पर दो-दो लाख और एक दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

मैनपुरी के दिहुली कांड के तीन दोषियों की सजा पर फैसला सुनाते हुए एडीजे विशेष डकैती इंदिरा सिंह की कोर्ट से टिप्पणी की गई कि 24 दलितों की सामूहिक हत्या बड़ा नरसंहार था। यह जघन्यतम अपराध है। इसके लिए फांसी से कम कोई सजा नहीं होनी चाहिए।

अदालत ने अपने आदेश में भी स्पष्ट लिखा है कि दोषियों को गर्दन में फांसी लगाकर मृत्यु होने तक लटकाया जाए। साथ ही आदेश में यह भी लिखा है कि मृत्यु दंडादेश हाईकोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा और मृत्यु दंडादेश जब तक निष्पादित नहीं किए जाएंगे, जब तक हाईकोर्ट से मृत्यु दंडादेश द्वारा पुष्ट न कर दिए जाए।

एडीजे विशेष डकैती कोर्ट ने सजा पर फैसला सुनाने से पूर्व कहा कि प्रस्तुत प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति, अपराध की भयावहता, अपराध का समाज पर पड़ने वाले प्रभाव एवं अपराधी की परिस्थितियों का अवलोकन करने के पश्चात न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि सिद्धदोष रामपाल, रामसेवक और कप्तान सिंह द्वारा किया अपराध विरल से विरलतम मामलों की श्रेणी में आता है। ऐसे में सिद्धदोषों द्वारा किए अपराध के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान आईपीसी की धारा 302 में उल्लेखनीय है।

कोर्ट में रही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था
एडीजे विशेष डकैती इंदिरा सिंह की कोर्ट में मंगलवार को सुबह 11.30 बजे दोषी कप्तान, रामपाल और रामसेवक को जेल से पुलिस भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच कोर्ट लेकर पहुंची। तीनों को अदालत में पेश किया गया। अदालत में उस वक्त किसी को भी प्रवेश नहीं दिया गया। कोर्ट के बाहर भी भारी सुरक्षा बल तैनात रहा। पुलिस ने चप्पे-चप्पे पर निगाह रखी।

दोषियों के परिजन भी आए
दोषी रामपाल, रामसेवक और कप्तान के परिजन भी सुबह ही कोर्ट में पहुंच गए। हालांकि पुलिस के कड़े पहरे के चलते परिजन की खुले तौर पर किसी से बात नहीं हो पाई। परिजन भी अपनी सुरक्षा को देखते हुए किसी भी यह बताने से कतराते रहे कि वह दोषियों के परिवार से हैं।