कासगंज कासगंज के चंदन गुप्ता हत्याकांड में एनआईए अदालत ने 28 दोषियों को आजीवन कारावास समेत जुर्माने की सजा सुनाई है। गैर हाजिर दोषी सलीम ने भी शुक्रवार को अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया जिसके बाद उसे जेल भेज दिया गया है।
कासगंज के चंदन गुप्ता हत्याकांड में 28 दोषियों को शुक्रवार दोपहर को जैसे ही आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, टीवी पर टकटकी लगाए बैठे चंदन के माता-पिता की आंखों से आंसू टपकने लगे। कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि हत्यारों को फांसी की सजा होगी। हालांकि हम न्यायालय के इस निर्णय का सम्मान करते हैं।
इससे पहले चंदन के पिता सुशील गुप्ता और बहन कीर्ति गुप्ता सुबह ही टीवी के आगे बैठ गए थे और फैसला आने का इंतजार कर रहे थे। चंदन की मां संगीता गुप्ता घर में मंदिर के समक्ष बैठकर बेटे के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलने की प्रार्थना कर रही थीं।
दोपहर में जैसे ही चंदन के हत्यारों को सजा सुनाई गई, सभी की आंखों से आंसू निकल पडे़। सभी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया। बता दें कि 26 जनवरी 2018 को एबीवीपी सहित हिंदू संगठनों की ओर से शहर में तिरंगा यात्रा निकाली जा रही थी।
इसमें शामिल चंदन गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में 31 आरोपियों के खिलाफ छह साल 11 माह सात दिन तक केस चला। बृहस्पतिवार को एनआईए कोर्ट लखनऊ ने इस केस में 28 आरोपियों को दोषी करार दिया था। दो आरोपी बरी हुए जबकि एक की ट्रायल के दौरान मौत हो चुकी है।
सजा होने के बाद ग्रहण किया अन्न जल
चंदन गुप्ता की मां ने बृहस्पतिवार दोपहर एनआईए कोर्ट की ओर से 28 आरोपियों को दोषी करार देने के बाद से ही अन्न जल त्याग दिया था। उनका कहना था कि दोषियों को सजा सुनाए जाने के बाद ही वह अन्न ग्रहण करेगी। शुक्रवार को दोषियों को सजा सुनाए जाने के बाद उन्होंने जल ग्रहण किया।
पूर्व नियोजित थी घटना, दोषियों को कठोर दंड देना जरूरी
एनआईए न्यायालय लखनऊ के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने चंदन हत्या एवं कासगंज की सांप्रदायिक हिंसा के मामले में अपना निर्णय सुनाते हुए अपना मत भी व्यक्त किया। न्यायालय ने कासगंज के सांप्रदायिक हिंसा की घटना के बारे में कहा कि इसे मात्र छिटपुट व अचानक होने वाली घटना नहीं माना जाएगा। यह पूर्व नियोजित घटना है और इससे जुड़े अपराधियों एवं दंगाइयों को कठोर संदेश देने के आशय से दोषियों को कठोर दंड से दंडित किया जाना उचित होगा।न्यायालय ने अपने निर्णय में सांप्रदायिकता पर काफी तल्ख टिप्पणी की। निर्णय में कहा कि सांप्रदायिकता का तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृत्ति से है जो धर्म और संप्रदाय के नाम पर संपूर्ण समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के विरुद्ध है। जो व्यक्ति को केवल अपने व्यक्तिगत धर्मों के हितों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें संरक्षण करने की भावना को महत्व देती है। सांप्रदायिकता भारत के राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है क्योंकि यह विचारधारा अन्य समुदायों के विरुद्ध अपने समुदाय की आवश्यकता की एकता पर बल देती है। इस प्रकार सांप्रदायिकता रूढ़िवादी सिद्धांतों में विश्वास असहिष्णुता तथा अन्य धर्मों के प्रति नफरत को भी बढ़ावा देती है, जोकि समाज को विभाजन की ओर अग्रसर करता है।