संभल
संभल में एक और मंदिर मिला है। लक्ष्मणगंज में 152 साल पुराना खंडहरनुमा बांके बिहारी प्राचीन मंदिर मिला है। यह मंदिर अस्तित्व खो चुका है। यह इलाका मुस्लिम बहुल है।
चंदौसी का लक्ष्मणगंज मोहल्ला नाम से तो सनातन की पहचान कराता है। लेकिन वर्तमान में यहां की आबादी शतप्रतिशत मुस्लिम बहुल है। 25 साल पहले तक यहां हिंदुओं की बड़ी आबादी होती थी, लेकिन धीरे-धीरे यहां मुस्लिम आबादी बढ़ती गई। इसके बाद हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया इसका असर यहां मौजूद करीब 152 साल पुराने बांके बिहारी मंदिक पर पड़ा। कभी इस मंदिर में सुबह शाम पूजा अर्चना होती थी।
1992 में संभल में हुए दंगे के बाद से बंद मोहल्ला कछवायन स्थित प्राचीन राधा-कृष्ण मंदिर को 32 साल के बाद मंगलवार को प्रशासन ने खुलवा दिया है। मंदिर की साफ सफाई के बाद लोगों ने पूजा-अर्चना शुरू कर दी है। मंदिर की सुरक्षा के लिए फोर्स तैनात की गई है। नगर निवासी सुमित कुमार सैनी ने बताया कि 1992 से पहले मोहल्ला कछवायन में मिश्रित आबादी थी।
यहां पर सैनी समाज के 200 परिवार रहते थे। लेकिन 1992 में दंगा भड़का तो मोहल्ला मुस्लिम बहुल होने के चलते सैनी समाज के लोग काफी डर गए थे।
जिसके बाद लोगों ने धीरे-धीरे पलायन शुरू कर दिया। कुछ ही समय में सैनी समाज के सभी परिवार अपने मकान मुस्लिमों को बेचकर हिंदू बहुल इलाकों में जाकर बस गए। जिसके बाद मंदिर बंद हो गया था। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण सैनी समाज के लोग नियमित पूजन नहीं करने के लिए आते थे।
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आजादी के बाद संभल दंगे की आग में बार-बार जला है। दंगों और बवाल की कीमत दोनों समुदाय के दर्जनों लोगों को अपनी जान से चुकानी पड़ी। जब भी दंगा हुआ डरे सहमे हिंदुओं ने मुस्लिम बहुल इलाकों से पलायन कर लिया था। यहां तक अपने मकान और संपत्ति भी औने-पौने दाम में बेच दिए थे।
मोहल्ला कछवायन से पलायन करने वाले सैनी समाज के लोगों ने बताया कि जब 1992 में दंगा हुआ तो दिन- रात भय सताने लगा था। इसलिए धीरे धीरे सभी परिवारों ने मोहल्ले से पलायन कर लिया। सभी ने अपने मकान बेच दिए और राधा कृष्ण का प्राचीन मंदिर में भी ताला लग गया।
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मंदिर बंद पड़ा था। इसकी सूचना पुलिस को मिली थी। पुलिस की देखरेख में मंदिर की सफाई कराई गई है। सुरक्षा के लिहाज से पुलिसकर्मी तैनात कर दिए हैं। अब लोगों ने नियमित पूजन करने की तैयारी की है। -कृष्ण कुमार बिश्नोई, एसपी, संभल
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दंगे के दौरान सभी परिवारों ने पलायन कर दिया। मंदिर के ताले की चाबी कल्लूराम सैनी के पास रहती थी। रोकटोक कोई नहीं थी लेकिन मुस्लिम बहुल इलाके में पूजा पाठ नियमित नहीं किया गया। -ऋषिपाल सिंह, सरायतरीन