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सीरिया में बशर अल असद परिवार के 50 साल के शासन का अंत होने का दावा, बशर अल असद क्यों भागने को हुए मजबूर?

दमिश्क

साल 2011 में असद सरकार के खिलाफ अरब स्प्रिंग विद्रोह से शुरू हुए इस गृह युद्ध में करीब पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है। गृह युद्ध से 2.3 करोड़ की आबादी वाले देश से करीब 68 लाख लोगों को अपने घरों से मजबूर बेघर होना पड़ा है और लाखों लोग विदेशों में शरणार्थी बन गए हैं।

सीरिया में बशर अल असद परिवार के 50 साल के शासन का अंत होने का दावा किया जा रहा है। विद्रोहियों ने सीरिया पर कब्जा कर लिया है और राष्ट्रपति बशर के परिवार समेत देश छोड़कर भागने की खबरे हैं। विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क समेत प्रमुख शहरों पर कब्जा कर लिया है। सीरिया बीते 13 वर्षों से गृह युद्ध में फंसा हुआ था और अब बशर सरकार के पतन के बाद इसका गृह युद्ध समाप्त होने की बजाय और बढ़ने की आशंका है। सीरिया में हुए इस सत्ता परिवर्तन का इस्राइल पर भी गहरा असर होगा और इस्राइल की सरकार भी इस खतरे से वाकिफ है।

सीरिया में साल 2016 के बाद गृह युद्ध धीमा पड़ गया था, लेकिन बीते हफ्ते प्रमुख विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) ने अन्य विद्रोही गुटों के साथ मिलकर अलप्पो, इदलिब और होम्स शहरों पर तेज हमले शुरू कर दिए और आखिरकार इन पर कब्जा कर लिया। अब विद्रोही गुटों ने राजधानी दमिश्क पर भी कब्जा कर लिया है और सीरिया की सेना के शीर्ष अधिकारियों ने भी संकेत दिए हैं कि सीरिया से बशर अल असद सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया है।
सीरिया में कैसे घटा पूरा घटनाक्रम
कट्टरपंथी समूह हयात तहरीर अल-शाम ने पिछले हफ्ते सीरिया में अचानक और सफल आक्रमण करके चौंका दिया। हयात तहरीर अल-शाम या एचटीएस लंबे समय से देश का सबसे मजबूत विद्रोही गुट माना जाता रहा है। इन विद्रोहियों ने 26 नवंबर को अचानक अलप्पो के उत्तर और उत्तर-पश्चिम के इलाकों से हमला किया। वहीं 29-30 नवंबर को वे शहर में घुस आए और सेना को वहां से खदेड़ दिया। एचटीएस के हजारों लड़ाकों ने अलप्पो के बाद कई अन्य प्रमुख शहरों पर कब्जा कर लिया। साल 2011 में असद सरकार के खिलाफ अरब स्प्रिंग विद्रोह से शुरू हुए इस गृह युद्ध में करीब पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है। गृह युद्ध से 2.3 करोड़ की आबादी वाले देश से करीब 68 लाख लोगों को अपने घरों से मजबूर बेघर होना पड़ा है और लाखों लोग विदेशों में शरणार्थी बन गए हैं।
सीरिया सरकार को रूस के साथ ही ईरान और हिजबुल्ला का भी समर्थन था, जिसकी वजह से बशर सरकार का सीरिया पर मजबूत कब्जा था, लेकिन अब इस्राइल के साथ लड़ाई में हिजबुल्ला को बड़ा झटका लगा है। वहीं साल 2016 में बशर सरकार की मदद के लिए अपने लड़ाकू विमानों को सीरिया में तैनात करने वाला रूस भी यूक्रेन युद्ध में फंसा हुआ है। ईरान भी इस्राइल के साथ तनाव में उलझा हुआ है, जिससे बशर सरकार कमजोर हुई और इस मौके का फायदा उठाकर विद्रोहियों ने सीरिया में हमले तेज कर दिए। बशर अल असद ने भी बीते दिनों अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों पर विद्रोहियों को समर्थन देने का आरोप लगाया था।
हमला करने वाले विद्रोही कौन हैं?
इस हमले की शुरुआत हयात तहरीर अल-शाम ने की थी। हयात तहरीर अल-शाम का अर्थ है ग्रेटर सीरिया की मुक्ति के लिए आंदोलन। अबू मोहम्मद अल-गोलानी के नेतृत्व वाला एचटीएस लंबे समय से इदलिब में प्रमुख ताकत रहा है। तहरीर अल-शाम को पहले जबात नुसरा फ्रंट के नाम से जाना जाता था। दरअसल, एचटीएस को अल-कायदा ने बनाया था ताकि यह सीरिया के गृहयुद्ध खत्म होने के बाद यहां की स्थिति का फायदा उठा सके। यह जल्द ही अपने मकसद में कामयाब भी हो गया और इसने विद्रोही हमलों के साथ-साथ सेना और अन्य दुश्मनों के खिलाफ आत्मघाती बम विस्फोट किए। हालांकि, यह समूह धीरे-धीरे सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट का कट्टर दुश्मन बन गया और अंततः 2016 में अल-कायदा से भी अलग हो गया। अमेरिका, रूस, तुर्किये और अन्य देशों ने तहरीर अल-शाम को आतंकवादी समूह घोषित किया है। इसका नेता 42 वर्षीय अहमद हुसैन अल-शरा है, जिसे अबू मुहम्मद अल-गोलानी के नाम से भी जाना जाता है। गोलानी का जन्म सीरिया में हुआ था। 1967 के युद्ध के बाद जब इस्राइल का गोलान हाइट्स पर नियंत्रण हुआ तो इसका परिवार यहां से चला गया। गोलानी को 2006 में हजारों अन्य विद्रोहियों के साथ हिरासत में लिया गया था। इसके बाद उसे पांच साल तक अमेरिका और इराकी जेलों में कैद रखा गया। अबू मुहम्मद अल-गोलानी को 2011 में रिहा किया गया और इसके बाद यह अल-कायदा का नेतृत्व करने के लिए सीरिया लौट आया।
सीरिया में गृह युद्ध गहराने की आशंका
सीरिया में विद्रोही गुटों के सत्ता पर काबिज होने के बाद अब सीरिया में गृह युद्ध गराने की आशंका है। इसकी वजह ये है कि बशर अल असद सरकार को रूस का समर्थन था, वहीं विद्रोही गुटों का समर्थन अमेरिका द्वारा किया जा रहा है। इस तरह सीरिया में रूस और अमेरिका का दखल आगे भी बने रहने की आशंका है। साथ ही सीरिया में खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस की भी मौजूदगी है। ऐसे में बदले हालात में आईएसआईएस भी अपनी ताकत को बढ़ा सकता है। ईरान और तुर्किये के भी सीरिया में हित हैं। ऐसे में कह सकते हैं कि सीरिया में हालात सामान्य होने की उम्मीद फिलहाल कम ही है।
इस्राइल के लिए भी बढ़ा खतरा
इस्राइल पहले ही हमास और हिजबुल्ला के मोर्चे पर लड़ाई में उलझा हुआ है। अब सीरिया में बदले हालात ने इस्राइल की चिंता को बढ़ा दिया है क्योंकि इस्राइल और सीरिया की सीमा गोलान हाइट्स पर सशस्त्र बलों ने संयुक्त राष्ट्र की पर्यवेक्षक सेना पर हमले शुरू कर दिए हैं। इस्राइल को डर है कि सत्ता पर काबिज होने के बाद गोलान हाइट्स की तरफ से भी इस्राइल पर हमले हो सकते हैं। इस्राइली सेना हालात पर नजर बनाए हुए है।
पूरे पश्चिम एशिया की भू-राजनीति पर पड़ेगा गहरा असर
सीरिया में जारी गृह युद्ध असल में पूरे पश्चिम एशिया पर दबदबा बनाने की राजनीति का हिस्सा है। सीरिया की सीमा इराक, तुर्किये, जॉर्डन, लेबनान और इस्राइल जैसे देशों से लगती है। सीरिया पर दबदबे का मतलब है कि पश्चिम एशिया के अहम व्यापार मार्गों, ऊर्जा गलियारों तक पहुंच मिल सकती है। जिससे पूरे पश्चिम एशिया पर दबाव डाला जा सकता है। सीरिया में बशर अल असद की सरकार के सत्ता से हटने का सबसे ज्यादा असर रूस पर होगा क्योंकि पश्चिम एशिया में सीरिया ही रूस का सबसे भरोसेमंद साथी था। वहीं विद्रोही गुट को अमेरिका का समर्थन है। सीरिया गृह युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में भी उछाल आने की आशंका है, जिसका असर भारत पर भी होगा।