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जेडीएस नेता भवानी रेवन्ना को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत, अग्रिम जमानत रद्द करने से इनकार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जेडीएस नेता भवानी रेवन्ना को बड़ी राहत देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को बरकार रखा। हाईकोर्ट ने भवानी रेवन्ना को अग्रिम जमानत दी थी, जिसके खिलाफ कर्नाटक एसआईटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जेडीएस नेता की अग्रिम जमानत रद्द करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और भवानी रेवन्ना को दी गई अग्रिम जमानत में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

भवानी रेवन्ना जेडीएस नेता और पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना की मां हैं। प्रज्वल रेवन्ना पर कई महिलाओं के यौन शोषण का आरोप हैं। प्रज्वल पर ये भी आरोप हैं कि वे महिलाओं का यौन शौषण करते वक्त खुद ही वीडियो रिकॉर्ड करते थे और बाद में रिकॉर्डिंग दिखाकर महिलाओं को ब्लैकमेल कर बार-बार उनका शोषण करते थे। प्रज्वल रेवन्ना की ये वीडियो अप्रैल में सार्वजनिक हो गईं, जिसके बाद कर्नाटक की राजनीति में भूचाल आ गया था। वीडियो वायरल होने के बाद प्रज्वल विदेश चले गए थे, लेकिन बाद में विदेश से लौटने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। भवानी रेवन्ना पर प्रज्वल रेवन्ना के शोषण का शिकार हुई एक महिला का अपहरण करने और उसे प्रताड़ित करने का आरोप है। इसी मामले में हाईकोर्ट ने भवानी रेवन्ना को अग्रिम जमानत दी थी।

ओटीटी और अन्य प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की निगरानी के लिए स्वायत्त निकाय स्थापित करने की जनहित याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका खारिज कर दी, जिसमें केंद्र को भारत में ओवर-द-टॉप (ओटीटी) और अन्य प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की निगरानी करने तथा वीडियो को विनियमित करने के लिए एक स्वायत्त निकाय स्थापित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि ये नीतिगत मामले हैं। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस तरह के मुद्दे कार्यपालिका के नीति निर्माण क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और इसके लिए विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता होती है।

जनहित याचिका में नेटफ्लिक्स की सीरीज ‘आईसी 814: द कंधार हाईजैक’ का भी हवाला दिया गया, क्योंकि ओटीटी प्लेटफॉर्म ने दावा किया है कि यह वास्तविक जीवन की घटनाओं पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि एक वैधानिक फिल्म प्रमाणन निकाय – केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) मौजूद है, जिसे सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को विनियमित करने का काम सौंपा गया है। जनहित याचिका में कहा गया है, ‘हालांकि, ओटीटी सामग्री की निगरानी/विनियमन के लिए ऐसा कोई निकाय उपलब्ध नहीं है और वे केवल स्व-नियमन से बंधे हैं, जिन्हें ठीक से संकलित नहीं किया गया है और विवादास्पद सामग्री को बिना किसी जांच और संतुलन के बड़े पैमाने पर जनता को दिखाया जाता है।’