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बृज बिहारी केस में शीर्ष अदालत से छिपाया गया सच; जदयू विधायक के जिंदा भाई को कोर्ट ने माना मृत

पटना:  आम आदमी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा तक के अफसरों से फर्जीवाड़े की खबरें आपने सुनी होंगी; लेकिन इस बार देश के सर्वोच्च न्यायालय से फर्जीवाड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट को बिहार के एक केस में झांसे में ऐसा रखा गया कि उसने बिहार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के मामले में अंतिम फैसला लिखते समय एक जीवित को मृत मान लिया। बिहार के हाई प्रोफाइल मर्डर केस में दोषी और निर्दोष माने गए सभी अभियुक्त चर्चित या उनके करीबी थे। ऐसे में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड के विधायक अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय के भाई और बिहार के गोपालगंज, सारण से लेकर उत्तर प्रदेश तक के नामी सतीश पांडेय को सुप्रीम कोर्ट में ‘मृत’ बताया जाना और फैसले में इसका ही जिक्र आना चर्चा में है। पत्नी स्व. उर्मिला पांडेय गोपालगंज जिला परिषद् की निर्विरोध अध्यक्ष रही थीं। बेटे मुकेश पांडेय भी जिला परिषद् अध्यक्ष रह चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में क्या लिखा है
बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में राष्ट्रीय जनता दल के वैशाली लोकसभा प्रत्याशी और पूर्व विधायक विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को सुप्रीम कोर्ट ने तीन अक्टूबर को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उन्हें दो हफ्ते में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया गया है, क्योंकि 2014 में हाईकोर्ट से निर्दोष करार दिए जाने के कारण यह फिलहाल बाहर हैं। इसी केस में लोक जनशक्ति पार्टी के बाहुबली पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, बाहुबली पूर्व विधायक राजन तिवारी समेत छह आरोपियों को इस हत्याकांड से सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया।

चालीस पेज इस फैसले के दस्तावेज में सुप्रीम कोर्ट ने एक जगह सतीश पांडेय को मृत मानते हुए आगे इसपर चर्चा ही नहीं की है। सीतीश पांडेय के छोटे भाई अमरेंद्र पांडेय कुचायकोट से लगातार पांचवीं बार जदयू विधायक हैं। जब बृज बिहारी प्रसाद और उनके अंगरक्षक बिहार पुलिस के सिपाही लक्ष्मेश्वर साहू की हत्या हुई थी, तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। अब उन्हीं की पार्टी के नेता को उम्रकैद की सजा मिली है।

सीबीआई जांच पर सवाल उठ रहा है
बृज बिहारी हत्याकांड में फैसले के बाद उनकी पत्नी व पूर्व सांसद रमा देवी का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें इस केस के फैसले के लिए उन्होंने अमित शाह का आभार जताया था। अब इस केस में केंद्रीय जांच ब्यूरो पर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि 1998 में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के अहाते में पुलिस अभिरक्षा के दरम्यान 13 जून 1998 को बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के एक साल पूरा होने के पहले ही सात मार्च 1999 को यह केस सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया था। इस केस में प्राथमिक जांच और साक्ष्य बिहार पुलिस ने जमा कराए थे। उसके बाद सीबीआई ने ही केस को आगे बढ़ाया।

निचली अदालत में दोषियों को सजा दिलाने, हाईकोर्ट में सभी के बरी हो जाने और अब सुप्रीम कोर्ट में दो दोषियों को उम्रकैद मिलने तक सीबीआई की जांच और उसके जुटाए या अनुमोदित साक्ष्यों पर ही ज्यादा बहस हुई। ऐसे में सतीश पांडेय जैसे चर्चित शख्स को मृत बताए जाने की चर्चा तेजी से फैल रही है। जदयू विधायक के भाई होने के नाते विपक्ष इसे मुद्दा बनाए या सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने के लिए सीबीआई को घेरे तो आश्चर्य नहीं।