अलीगढ़: एएमयू का मदरसातुल उलूम 24 मई 1877 को शुरू हुआ था। पहले साल सात छात्रों ने दाखिला लिया था। यहां पहले छात्र के रूप में सर सैयद अहमद खान के दोस्त मौलवी समीउल्लाह ने अपने बेटे हमीदुल्लाह का दाखिला कराया था, जो बाद में हैदराबाद निजाम में न्यायाधीश बने। पहले हेड मास्टर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एचजीआई सिडंस थे।
एएमयू उर्दू एकेडमी के पूर्व निदेशक डॉक्टर राहत अबरार ने बताया कि मदरसे में एक जनवरी 1875 को पढ़ाई शुरू हुई थी। छात्रों को पढ़ाने के लिए सर सैयद ने बृजनाथ, मौलवी अब्दुल हसन, मौलाना मोहम्मद अकबर, सैयद जाफर अली, मौलवी नजफ अली, मौलवी अब्दुल रज्जाक को शिक्षक के रूप में नियुक्त किया था। एमएओ कॉलेज में वर्ष 1878 में इंटर और 1881 में बीए की पढ़ाई शुरू हुई। पहले स्नातक ईश्वरी प्रसाद, पहले स्नातक विधि शंकरलाल और पहले परास्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले अंबा प्रसाद थे।
मुरादाबाद में भी स्थापित किया था मदरसा
सर सैयद अहमद ने वर्ष 1859 में मुरादाबाद में फारसी मदरसा स्थापित किया था। 9 जनवरी 1864 को सर सैयद ने गाजीपुर में साइंटिफिक सोसाइटी बनाई थी। इसमें अंग्रेजी और पश्चिमी सभ्यताओं पर आधारित साहित्य का उर्दू में अनुवाद किया जाता था, ताकि भारतीय लोगों को अंग्रेजी साहित्य अध्ययन के बारे में पता चल सके। सोसाइटी के सदस्य हिंदू-मुस्लिम दोनों थे।
एएमयू स्थापित करने में इनका रहा सहयोग
1898 में सर सैयद के निधन के बाद एएमयू स्थापित करने में उनके सहयोगियों की अहम भूमिका रही। इनमें ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली, अल्लामा मोहम्मद शिबली नोमानी, मौलवी समीउल्लाह खान, राजा किशनदास, मौलाना सैयद जैनुल आबदीन, जस्टिस सैयद महमूद, नवाब मोहसिन-उल-मुल्क, नवाब विकार-उल-मुल्क, नवाब मोहम्मद इशाक खान, सैयद मोहम्मद अली, राजा महमूदाबाद, साहबजादा आफताब आलम खान, सर जियाउद्दीन अहमद, सर आगा खान तृतीय आदि शामिल हैं।