Friday , November 22 2024
Breaking News

जिसे देखने सुरंग से आती थीं रानी महालक्ष्मीबाई, 457 साल पुराना है इतिहास

बरेली:  बरेली में मर्यादा का मंचन और राम का किरदार शहरवासियों की सांसों संग कदमताल कर रहा है। दर्जनभर स्थानों पर रामलीला का मंचन किया जा रहा है, लेकिन चौधरी तालाब की रामलीला इनमें सबसे अलग है। 457 साल से इसकी ओट में राजा वसंतराव की पत्नी रानी महालक्ष्मीबाई का किरदार भी सांस ले रहा है। वर्ष 1567 में इसका शुभारंभ कराने वाले राजा जसवंत राव भले ही लोगों के स्मृति पटल से विस्मृत हो गए हों, लेकिन रानी का नाम सबको याद है।

इसका कारण है, रामलीला से उनका जुड़ाव। वह प्रभु श्रीराम की अनन्य भक्त थीं। चौधरी तालाब पर होने वाले मंचन को देखने के लिए उन्होंने महल (रानी साहब का फाटक) से रामलीला स्थल तक दो किमी लंबी सुरंग बनवाई थी। यह सुरंग तालाब के पास स्थित प्रसिद्ध होलका देवी मंदिर में निकलती है। यह मंदिर भी उन्हीं का बनवाया है। बताते हैं कि होलका उनकी कुलदेवी थीं। इस सुरंग के अवशेष आज भी लोगों को रानी के किरदार का अहसास कराते हैं। आसपास के क्षेत्रों के लोग उनको कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।

तीन जगह होता है मंचन
18 दिनों तक चलने वाली रामलीला का मंचन तीन जगह किया जाता है। पहले आठ दिन चौधरी तालाब, इसके बाद आठ दिन बड़ा बाग में मंचन होता है। एक दिन शोभायात्रा निकाली जाती है। वहीं, अंतिम दिन रानी साहब के फाटक पर भव्य राजतिलक का आयोजन किया जाता है। यही कारण है कि यह ऐतिहासिक रामलीला देशभर में प्रसिद्ध है।

श्री रानी महालक्ष्मीबाई रामलीला समिति के कोषाध्यक्ष प्रभु नारायण तिवारी बताते हैं कि तीन जगह होने वाली यह प्रदेश की पहली रामलीला है। साथ ही, यह देश की सबसे पुरानी तीन रामलीलाओं में भी शामिल है। सबसे पहली अयोध्या, दूसरी काशी रामनगर और तीसरी बरेली के चौधरी तालाब की रामलीला है। इस बार अयोध्या और बिहार के 24 कलाकार इसका मंचन करेंगे।