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दिव्यांग बच्चों के अधिकारों पर जस्टिस नागरत्ना ने जताई चिंता, राज्यों को दिए अहम सुझाव

 नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस बी वी नागरत्ना ने रविवार को कहा कि दिव्यांग बच्चों के अधिकारों को यथासंभव व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए। जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन्हें सकारात्मक माहौल और सहायता मिले, ताकि वे रचनात्मक नागरिक बन सकें। न्यायमूर्ति नागरत्ना सर्वोच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति की अध्यक्ष भी हैं।

न्यायाधीश जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा कि विकलांगता के साथ जी रहे बच्चे सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बच्चे हैं। उन्हें सुरक्षा का अधिकार और पारिवारिक वातावरण में रहने का अधिकार है। जस्टिस नागरत्ना ‘विकलांग बच्चों के अधिकारों की रक्षा और विकलांगताओं की अंतर्संबंधता’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक परामर्श के समापन सत्र में बोल रही थीं।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि, विकलांग बच्चों के अधिकारों को सिद्धांत और व्यवहार में यथासंभव रूप से लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा दृढ़ संकल्प विकलांग बच्चों को ऐसे समाज तक पहुंच प्रदान करना होना चाहिए जो उनकी अद्वितीय क्षमताओं को स्वीकार करता हो और उनकी आवाज को गरिमा और सम्मान के साथ बुलंद करता हो।

‘विकलांग बच्चों की सुरक्षा राज्यों की जिम्मेदारी’
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, इस परामर्श को समाप्त करने से पहले हमें बच्चों, विशेष रूप से विकलांग बच्चों की सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि, बच्चों के अधिकारों में बाधा डालने वाली सभी बाधाओं को दूर करके विकलांग बच्चों की पहुंच और समावेशन सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक राज्य को आवश्यक नीति और कानूनी कदम उठाने चाहिए।

उन्होंने कहा कि विकलांग बच्चों की सुरक्षा के लिए एक राज्य कार्य योजना विकसित करे। जिसकी समीक्षा और निगरानी राज्यों और उच्च न्यायालयों की किशोर न्याय समितियों द्वारा संयुक्त रूप से की जाएगी। इससे पहले शनिवार को नागरत्ना ने कहा था कि नीतियां दिव्यांग बच्चों के लिए बाधाओं को दूर करने वाली होनी चाहिए क्योंकि इन अवरोधों को हटाने से उन्हें समाज में एकीकृत करने का मार्ग प्रशस्त होता है। नागरत्ना ने कहा, ऐसी दुनिया में, जहां संसाधन सीमित हैं और कई सारी प्रतिस्पर्धी प्राथमिकताएं हैं, यह सुनिश्चित करना सर्वोपरि है कि दिव्यांग बच्चों को प्रभावित करने वाली नीतियां ठोस आंकड़ों और गहन शोध पर आधारित हों।