नई दिल्ली:कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि ‘एक देश-एक चुनाव’ व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि जब चुनाव नजदीक आते हैं, तो असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए भाजपा ऐसी बातें करती है। उनकी यह टिप्पणी तब सामने आई, जब इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय समिति ने बुधवार को एक रिपोर्ट केंद्रीय मंत्रिमंडल को सौंपी है।
लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने मार्च में रिपोर्ट सौंपी थी। इस मुद्दे पर पूछे जाने पर खरगे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, यह व्यावहारिक नहीं है। यह काम नहीं करेगा। जब चुनाव आते हैं और उन्हें उठाने के लिए कोई मुद्दा नहीं मिलता है तो वह असली मुद्दों से ध्यान भटका देते हैं।
इससे पहले, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर कोविंद समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर लिया है। कोविंद समिति को एक साथ चुनाव कराने के लिए व्यापक समर्थन मिला है। मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को मंजूरी दी है। उन्होंने यह भी कहा कि कोविंद समिति की सिफारिशों पर पूरे भारत में विभिन्न मंचों पर चर्चा की जाएगी। बड़ी संख्या में दलों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है। हम अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने का प्रयास करेंगे।
लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश
उच्च स्तरीय समिति ने पहले चरण के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है। इसके 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने की बात कही गई है। समिति ने सिफारिशों के क्रियान्वयन पर विचार करने के लिए एक ‘कार्यान्वयन समूह’ के गठन का भी प्रस्ताव रखा है। समिति के मुताबिक, एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों की बचत होगी। विकास और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा मिलेगा। लोकतांत्रिक ढांचे की नींव मजबूत होगी। इससे ‘इंडिया, जो भारत है’ की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी।
एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की बात
समिति ने राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से चुनाव आयोग की ओर से एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की भी सिफारिश की थी। फिलहाल भारत का चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों को ही देखता है। नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोगों की ओर से कराए जाते हैं। बताया गया कि समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं से समर्थन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, इनके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की जरूरत होगी, जिन्हें संसद से पारित कराना होगा।