द स्टोरी ऑफ पोखरन में देशप्रेम के गर्व से भरने वाला रोमांच है. यहां ऐसा इतिहास है, जो पता है लेकिन देखने में अच्छा लगता है. यह खबरों की भीड़ में एक खबरिया फिल्म है जो किसी न्यूज चैनल पर प्रसारित नहीं हुई. इसका थ्रिल बांधता है क्योंकि दुश्मनों की भी नजर मिशन पर लग चुकी है. वे लगातार आपकी पीठ दीवार से लगाए रखना चाहते हैं. ऐसे उल्टा माहौल में क्रिकेट के पिच पर बैकफुट से लगाए गए खूबसूरत स्ट्रेट ड्राइव की तरह है,

पोखरन में 1998 किए गए परमाणु परीक्षणों की यह कहानी
. निर्देशक अभिषेक शर्मा
व उनके राइटरों ने गहरे शोध के साथ 1990 की
संसार में
हिंदुस्तान की स्थिति को यहां दिखाया है
. तब कैसे अमेरिका अपने जासूसी सैटेलाइटों से सब पर नजर रखता था
व चीन-पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से निपटना एक चुनौती थी
. इन
दशा में
महत्वपूर्ण था कि
हिंदुस्तान आंखें दिखाने वालों को बाहुबल का एहसास कराता
. यह संभव था केवल परमाणु विस्फोट करके
. जो उसने 1998 में कर दिखाए
.
परमाणु की कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित है लेकिन इसे थोड़ा फिल्मी टच दिया गया है. कहानी 1990 के दशक के मध्य में प्रारम्भ होती है. पीएम दफ्तर में अधिकारी अश्वत रैना (जॉन अब्राहम) को देशभक्ति विरासत में मिली है. जब राष्ट्र के नेता अमेरिकी धमकियों व चीनी-पाकिस्तानी घुड़कियों के कागजी विरोध की बात कर रहे होते हैं तो अश्वत प्रस्ताव रखता है कि परमाणु परीक्षण करके ही इन्हें ताकत दिखाई जा सकती है.
मगर जब 1995 में हिंदुस्तान की परमाणु परीक्षण की प्रयास अमेरिका की नजर में आ जाती है व परीक्षण रोकने पड़ते हैं तो गाज अश्वत पर गिरती है. वह जॉब से बर्खास्त कर दिया जाता है. 1998 आते-आते सरकार/हालात बदलते हैं. अश्वत को फिर मौका मिलता है. इस बार अश्वत व उसकी टीम अमेरिकी जासूसी सैटेलाइटों को कैसे चकमा देकर मिशन को अंजाम तक पहुंचाती है, वह थ्रिलर वाले अंदाज में यहां दिखाया गया है.
परमाणु का थ्रिल सधा हुआ है व कहानी निशाना साधने के लिए निकले रॉकेट की तरह बढ़ती है. आप जानते हैं कि लक्ष्य भेद दिया जाएगा. पोखरन के ये परीक्षण बहुत दूर का इतिहास नहीं है, केवल बीस वर्ष पुरानी बात है. परंतु इसे पर्दे पर घटते देखना सुखद अनुभव है. पोरखन के परमाणु परीक्षण राष्ट्र के लिए गर्व के क्षण थे, फिल्म हमें उनका साक्षी होने का एहसास देती है. जॉन अब्राहम, डायना पैंटी व बोमन ईरानी अपने किरदारों में फिट हैं.
बैकग्राउंड संगीत अच्छा है. इस कहानी में आम देशप्रेमी फिल्मों की तरह कहीं पाक की भर्त्सना का राग नहीं है व न ही किसी राष्ट्र को दुश्मन बताने की प्रयास है. फिल्म अपनी ताकत को बढ़ाने के लक्ष्य व संसार में अपना लोहा मनवाने की जिद के साथ आगे बढ़ती है. यहां अमेरिका की जरूर पोल खुलती है कि कैसे वह संसार पर अपना दबदबा रखने के लिए विभिन्न राष्ट्रों की सैटेलाइटों से जासूसी कराता है. फिल्म में ज्ञानवर्द्धन करने वाली कई रोचक जानकारियां हैं.