नई दिल्ली: दोषियों की सजा माफी और समय से पहले रिहाई कराने के लिए अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट में झूठे बयान दे रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि लगातार इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। इससे हमारा विश्वास हिल गया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि पिछले तीन हफ्तों में उसके सामने ऐसे कई मामले आए हैं जहां दलीलों में गलत बयान दिए गए।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अदालत में सजा में छूट न दिए जाने की शिकायत को लेकर बड़ी संख्या में याचिकाएं दायर की जा रही हैं। पिछले तीन सप्ताह में यह छठा-सातवां मामला हमारे सामने आया है, जिसमें दलीलों में गलत बयान दिए गए हैं। शीर्ष अदालत में पीठ के सामने रोज 60-80 मामले दर्ज होते हैं। जजों के लिए हर मामले के प्रत्येक पेज को पढ़ना संभव नहीं है। फिर भी हर मामले को करीब से देखा जाता है।
पीठ ने कहा कि हमारा सिस्टम विश्वास पर काम करता है। जब हम मामलों की सुनवाई करते हैं तो हम बार के सदस्यों पर भरोसा करते हैं। लेकिन जब हमारे सामने इस तरह के मामले आते हैं, तो हमारा विश्वास हिल जाता है। कोर्ट ने कहा कि एक मामले में छूट की मांग के लिए दायर रिट याचिका में न केवल गलत बयान दिए गए हैं, बल्कि अदालत के समक्ष एक गलत बयान दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के तत्कालीन एडवोकेट ने जेल अधिकारियों को संबोधित 15 जुलाई, 2024 के ईमेल में झूठे बयान दोहराए। वकील इस स्थिति से अवगत थे, लेकिन 19 जुलाई, 2024 को एक गलत बयान दिया गया कि सभी याचिकाकर्ताओं सजा की अवधि समाप्त नहीं हुई है। पीठ ने कहा इस मामले में जुर्माना लगाया जाना चाहिए। लेकिन हम याचिकाकर्ताओं को उनके वकीलों द्वारा की गई गलतियों के लिए दंडित नहीं कर सकते।
कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था कि चार याचिकाकर्ताओं ने एक मामले में 14 साल की सजा बिना छूट के काट ली है। जबकि मामले में दिल्ली सरकार ने हलफनामा दायर किया था कि चार में से दो कैदियों ने सजा में छूट पाने के लिए 14 साल की सजा पूरी नहीं की है। पीठ ने कहा कि याचिका में गलत बयान दिया गया कि सभी चार याचिकाकर्ताओं ने वास्तविक 14 साल की सजा काट ली है।