नई दिल्ली: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के दीर्घावधि पूर्वानुमानों के वैश्विक उत्पादन केंद्रों की ओर से बुधवार को नई जानकारी दी।इससे सितंबर-नवंबर 2024 के दौरान वर्तमान तटस्थ स्थितियों (न तो अल नीनो और न ही ला नीना) से ला नीना स्थितियों के उभरने की 55 फीसदी संभावना का संकेत मिलता है।
डब्ल्यूएमओ के अनुसार ‘अक्तूबर 2024 से फरवरी 2025 तक यह संभावना बढ़कर 60 फीसदी हो जाएगी और इस दौरान अल नीनो के फिर से विकसित होने की संभावना बहुत कम है।’
क्या है ला नीना और अल नीनो?
ला नीना, जिसका स्पेनिश में अनुवाद ‘एक लड़की’ होता है, पूरी तरह से अलग जलवायु व्यवहार के लिए जिम्मेदार है। ला नीना के दौरान, मजबूत पूर्वी धाराएं समुद्री जल को पश्चिम की ओर धकेलती हैं, जिससे समुद्र की सतह, विशेष रूप से भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में, ठंडी हो जाती है। यह अल नीनो के विपरीत है, जिसका स्पेनिश में अनुवाद ‘एक लड़का’ होता है और जब व्यापारिक हवाएं कमजोर होती हैं, तो गर्म समुद्र की स्थिति गर्म हो जाती है, जिससे गर्म पानी अमेरिका के पश्चिमी तट की ओर पूर्व की ओर वापस चला जाता है।
मौसम विभाग की पुष्टि का इंतजार
ला नीना आमतौर पर भारत में मानसून के मौसम के दौरान तीव्र और लंबे समय तक बारिश और विशेष रूप से उत्तरी क्षेत्रों में सामान्य से अधिक ठंडी सर्दियों से जुड़ा होता है। हालांकि, भारत मौसम विज्ञान विभाग ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है कि ला नीना की स्थिति सामान्य से अधिक सर्दियां पैदा करेगी।
डब्ल्यूएमओ का कहना है कि प्राकृतिक रूप से होने वाली जलवायु घटनाएं जैसे ला नीना और अल नीनो घटनाएं मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही हैं। इससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, चरम मौसम और जलवायु घटनाओं को बढ़ा रही हैं और मौसमी वर्षा तथा तापमान को प्रभावित कर रही हैं।
ला नीना के कारण थोड़े समय के लिए ठंड
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, ‘पिछले साल जून से हमने असाधारण वैश्विक भूमि और समुद्री सतह के तापमान को देखा है। भले ही ला नीना के कारण थोड़े समय के लिए सही लेकिन बहुत अधिक ठंड पड़ सकती है। मगर, यह वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के कारण बढ़ते वैश्विक तापमान के दीर्घकालिक प्रक्षेपवक्र को नहीं बदलेगी।’