नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 22 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। दरअसल, हाईकोर्ट ने ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को रद्द कर दिया था। इसी फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है।
मदरसे में बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं
एनसीपीसीआर का कहना है कि मदरसे में बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है और इसलिए यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई एक्ट), 2009 के प्रावधानों के खिलाफ है। आयोग ने आगे कहा कि मदरसों में बच्चों को औपचारिक और सही गुणवत्ता की शिक्षा नहीं मिल रही है। मदरसे शिक्षा के अधिकार कानून के तहत भी नहीं आते इसलिए वहां के बच्चे आरटीई एक्ट के तहत मिलने वाले लाभ नहीं ले पाते।
एक स्वस्थ वातावरण और विकास के बेहतर अवसरों से भी वंचित
आगे कहा कि बच्चों को न केवल एक उपयुक्त शिक्षा से वंचित किया जाता है, बल्कि एक स्वस्थ वातावरण और विकास के बेहतर अवसरों से भी वंचित किया जाता है। उन्हें मिड डे मील, यूनिफॉर्म और प्रशिक्षित टीचरों जैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती। मदरसों में कई शिक्षक ऐसे होते हैं, जिन्हें कुरान और धार्मिक ग्रंथों की जानकारी के आधार पर नियुक्त कर लिया जाता है। उन्होंने खुद ही शिक्षक बनने के लिए जरूरी ट्रेनिंग नहीं ली होती है।
गैर-मुस्लिमों को इस्लामी धार्मिक शिक्षा दी जा रही
हलफनामे में कहा गया, ‘ऐसे संस्थान गैर-मुस्लिमों को इस्लामी धार्मिक शिक्षा भी प्रदान कर रहे हैं, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का उल्लंघन है। मदरसे में शिक्षा प्राप्त करने वाला बच्चा स्कूल में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से वंचित रहेगा।’
आयोग ने कहा कि मदरसे न केवल शिक्षा के लिए असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल पेश करते हैं, बल्कि उनके कामकाज का तरीका भी मनमाना है जो पूरी तरह से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 29 के तहत निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया का अभाव है।
यह है मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 22 मार्च को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिया। अदालत ने कहा था कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला यानी कि इसके खिलाफ है। जबकि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का अंग है। कोर्ट ने राज्य सरकार से मदरसे में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था में तत्काल समायोजित करने का निर्देश दिया था। साथ ही सरकार को यह भी सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि छह से 14 साल तक के बच्चे मान्यता प्राप्त संस्थानों में दाखिले से न छूटें।