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काशी में विराजमान हैं 24 माधव और 108 गोपाल; मध्यमेश्वर में श्रीकृष्ण ने स्थापित किया था शिवलिंग

वाराणसी : कण-कण शंकर की नगरी काशी के कण-कण में श्रीहरि विष्णु भी विराजमान हैं। काशी का हर शिवलिंग शैव और वैष्णव की एकात्मकता का प्रतीक है। काशी खंड के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा है कि काशी के प्रत्येक शिवलिंग में मैं पाषाण रूप में अवस्थित हूं। काशी में भगवान कृष्ण के 24 माधव और 108 गोपाल स्वरूप विराजमान हैं।

पद्मपुराण के अनुसार भगवान कृष्ण जब पहली बार काशी आए थे तो उन्होंने मध्यमेश्वर में एक वर्ष तक तप किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने इष्ट को साक्षी मानकर संकटा मंदिर के समीप कृष्णेश्वर की स्थापना की थी। तपस्या के फलस्वरूप उनको योगफल की प्राप्ति हुई थी।

इसके बाद उनके पुत्र सांब की रोगमुक्ति की कामना से काशी में तप करने अपनी पत्नियों देवी रुक्मणी, सत्यभामा, भद्रा और जाम्बवंती के साथ काशी आए थे। भगवान की पत्नियों ने भी भगवान कृष्ण के स्वरूप में शिवलिंग स्थापित किए।

काफी रोचक है इतिहास
भगवान कृष्णेश्वर के निकट रुक्मणीश्वर और सत्यभामेश्वर हैं। पंचमुद्र महापीठ के निकट देवी भद्रा द्वारा स्थापित भद्रेश्वर लिंग और देवी जाम्बवंती द्वारा जाम्बवतीश्वर लिंग स्थापित है। इसके साथ ही काशी में गंगा के तट पर 24 स्थानों पर और शहर में 108 स्थानों पर गोपालस्वरूप में श्रीकृष्ण विराजमान हैं।

काशी के 24 माधव बिन्दुमाधव पंचगंगाघाट, शेषमाधव राजमन्दिर, शंखमाधव शीतलाघाट, ज्ञानमाधव ज्ञानवापी पांचों पांडव मंदिर, श्वेतमाधव हनुमानमन्दिर में देवी विशालाक्षी के समीप, प्रयागमाधव राम मंदिर दशाश्वमेधघाट, वैकुंठमाधव सिन्धियाघाट, वीरमाधव आत्मवीरेश्वर मंदिर गेट पर।