मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के एक न्यायधीश (मजिस्ट्रेट) को फटकार लगाई है। दरअसल उच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में मजिस्ट्रेट को निर्देश दिए थे कि दहेज उत्पीड़न के एक मामले में सुनवाई में तेजी लाएं। अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने इस आदेश का पालन नहीं किया। अदालत ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट ने इस मामले में कमजोर बहाने पेश किए।
‘मजिस्ट्रेट अपना काम करने में गंभीर नहीं थीं’
न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ ने नौ अगस्त को कहा था, ‘नवी मुंबई न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत की मजिस्ट्रेट ने उच्च न्यायालय के निर्देशों का सम्मान नहीं किया। ऐसा लगता है कि मजिस्ट्रेट अपना काम करने में गंभीर नहीं थीं।’ अदालत के आदेश की प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई है। बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने आगे कहा कि मजिस्ट्रेट ने निर्धारित समय के भीतर सुनवाई पूरी न करने के लिए सिर्फ बहाने बनाए।
‘हम कमजोर बहानों को स्वीकार नहीं कर सकते’
आपको बता दें कि यह पूरा मामला वैवाहिक विवाद और दहेज उत्पीड़न से जुड़ा है। अदालत ने कहा, ‘हम मजिस्ट्रेट द्वारा इस अदालत से जारी निर्देशों का पालन न करने के लिए बताए गए कमजोर बहानों को स्वीकार नहीं कर सकते। हमें लगता है कि मजिस्ट्रेट अपने न्यायिक कार्य का निर्वहन करने के लिए गंभीर नहीं है।’ पीठ ने निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट को उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति के समक्ष रखा जाए।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, उच्च न्यायालय ने यह आदेश दहेज उत्पीड़न के मामले का सामना कर रहे एक व्यक्ति द्वारा दायर आवेदन पर पारित किया है। आवेदन में दावा किया गया था कि उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2021 में मुकदमे में तेजी लाने के निर्देश दिए गए थे। इसके बावजूद, मजिस्ट्रेट ने अभी तक मुकदमे की सुनवाई पूरी नहीं की। वर्ष 2021 के फरवरी महीने में उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट अदालत को मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया था।
अदालत ने कहा था कि चार महीने के भीतर इस मामले में फैसला दिया जाए। अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर अर्जी को लेकर यह आदेश पारित किया था। याचिकाकर्ता ने मामले में आरोप मुक्त होने की मांग की थी। जब वर्ष 2021 के फरवरी महीने में उच्च न्यायालय ने मुकदमे में तेजी लाने के आदेश दिए, तो व्यक्ति ने अपनी याचिका वापस ले ली थी।